________________
मानो आपको अंतिम क्षणोंका आसार हो आया हों अथवा “महापुरुषोंकी वाणी को कालभी अनुसरण करता है"--- उक्ति चरितार्थ हुई हों। गुजरांवालांमें आप 'सरस्वती मंदिर की ख्वाहिश लेकर आये थे और अंतिम समयमें भी अपने लाडले प्रशिष्य 'वल्लभ'को उसी बातका परामर्श देकर-आदेश देकर, 'ॐ अर्हन्' के पुनरुच्चारणपूर्वक सबके साथ क्षमापना करते हुए, इस लोकमें भक्तजनोंको अनाथ छोड़कर स्वर्गको सनाथ बनानेके लिए चल पड़े।
बहुत अच्छी तरह सजायी हुई--विमान सदृश पालकी में गुरुदेवको बिराजित करके, चंदन चिता पर अग्निके सपुर्द कर दिया गया। अग्नि संस्कारके स्थान पर एक भव्य और विशाल समाधि मंदिरका निर्माण किया गया जो आपकी अमर कीर्तिका संदेश दे रहा है। "आमोदकारी आपकी छवि हो गई जो लुप्त है,
परंतु हृदयके बीच वो रहती हमारे गुप्त है | संसारकी निस्सारता का सार जिनको था मिला,
परलोकके आलोकसे था हृत्कमल जिनका खिला ।। संसृति रही दासा, उदासी किन्तु उससे वे रहे,
निःस्वार्थ हो परमार्थ-रत मिलते न वे किससे रहे ?"
86
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org