Book Title: Satya Dipak ki Jwalant Jyot
Author(s): Kiranyashashreeji
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 221
________________ --- नवतत्त्व (संक्षिप्त) --- बृहत् नवतत्त्वका ही संक्षिप्त रेखाचित्र इसमें दर्शित करवाया गया है। इन सारभूत रहस्योंको बिना किसी संदर्भ, अत्यन्त सरल भाषामें-बालजीवोंकी अभिज्ञता हेतु-प्रस्तुत किया है। जिसे पढ़कर जैन-जैनेतर सभीको इनकी जानकारी मिल सकती है। --- पद्य रचनायें --- विशाल साहित्य-सृजनकर्ता विद्वद्वर्य आचार्य प्रवर श्रीने अपनी लेखिनीसे सुंदर भाववाही, कलात्मक, आत्म कल्याणकारी मनमोहक लुभावने पद्य साहित्यको भी अवतारा है, जिसमें विविध पूजा-काव्य, पद संग्रह, स्तवन और सज्झाय संग्रह, मुक्तक एवं उपदेशात्मक फुटकल रचनायें, उपदेश बावनी', 'ध्यानशतक' ग्रन्थाधारित भावानुवाद (संवर तत्त्व अंतर्गत) आदि प्रमुख रूपसे दृष्टिगत होता है । इन सभीका विशिष्ट परिचय 'पर्व षष्ठम् में करवाया जायेगा। सारांश-- पूर्वाकित सर्व गद्य साहित्यके विश्लेषणात्मक विवरण द्वारा ग्रन्थकारकी जन समाजके प्रति हितार्थ एवं परोपकारार्थ दृष्टिका परिचय प्राप्ति होता है। कहींकहीं विषयोंके समान शीर्षक नज़र आते हैं, अतः पुनरावृत्तिके दोषकी झलक महसूस होती है। लेकिन, जब उनका अध्ययन किया जाता है तब हमारा भ्रम खुल जाता है। क्योंकि प्रत्येक बार उसी एक विषयको उन्होंने नयेनये संदर्भोमें विविध आयामोंके साथ पेश किया है-जो उनकी तीव्रतम प्रातिभ मेधाका ज्वलंत उदाहरण रूप है। उनके गद्य ग्रन्थोंको हम जैन-धर्म-तत्त्व पूंज कह सकते हैं तो पद्य-ग्रन्थों एवं संग्रहोंको शांतरससे लसलसता भक्तिरस भरपूर निर्मल निझरोंका अक्षय कोश कहेंगें । 194) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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