Book Title: Satya Dipak ki Jwalant Jyot
Author(s): Kiranyashashreeji
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 240
________________ ३७. भारतेन्दु ग्रन्थावली- भाग ३ - प्रका. नागरी प्रचारिणी सभा - काशी ३८. भारतेन्दु युग और हिन्दी भाषाकी विकास परम्परा - श्री रामविलास शर्मा ३९. भाषा और समाज- रामविलास शर्मा ४०. मुंहपत्ती विषे चर्चा और श्री बूटेरायजीका जीवन चरित्र - प्रका. कालीदास सांकलचंद रस मीमांसा - आचार्य रामचंद्र शुक्ल ४२. रामचरित ४१. तुलसीदासजी मानस - श्री लब्धि प्रश्न - संपा. श्री ४३. वारिषेण सुरीश्वरजी म. ४४. श्रीमद्विजयानंद सूरि जीवन और कार्य मुनि श्री नविनचंद्र विजयजी म. श्रीमद्विजयानंद सूरि की स्तुति प्रका, श्री आत्मानंद जैन सभा - अंबाला ४५. ४६. श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रन्थ-सं. मुनि श्री नविनचंद्र वि.म. .४७. सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानंद सरस्वती ४८. सत्यार्थ भास्कर स्वामी विद्यानंद सरस्वती ४९. ५०. ५१. 'सहस्त्रकूट नामावली प्रका. - श्री चंपक श्रीजी म. श्री चंद्राननाश्रीजी म. ५२. साहित्यालोचन - श्यामसुंदरदासजी. ५३. स्याद्वाद पर कुछ आक्षेप और उनका परिहार- श्री मोहनलालजी मेहता ५४. स्वरोदय ज्ञान - श्री चिदानंदजी म.सा. ५५. ५६. सद्धर्म संरक्षक - (मुनि श्री बूटेरायजी म. का जीवन चरित्र) पं. हीरालालजी दुग्गड़ सवैया इकतीसा श्री चिदानंदजी म.सा. स्वामी नारायण संप्रदाय और मुक्तानंदजी का साहित्य-डॉ. अरुणा शुक्ल हनुमान बाहुक -तुलसीदासजी आत्मचरित्र (उर्दू) - लाला बाबूरामजी जैन ५७. ५८. हिन्दीके ५९. हिन्दी पर्यायवाची कोश- डॉ. भोलानाथ तिवारी ६०. हिन्दी साहित्यका इतिहास- डॉ. नगेन्द्र ६१. हिन्दी साहित्यका इतिहास-आ. रामचन्द्रजी शुक्ल ६२. हिन्दी साहित्यका उद्भव और विकासEnglish Books: 1. An Appreciation - Chandra Gupta Jain 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. आगम वाङ्मय : १. श्री आचारांग सूत्र ( प्रथम अंग ) - गणधर श्री सुधर्मा स्वामीजी २. श्री आचारांग सूत्र (संक्षिप्त) - संपा. आ. श्रीमद्विजय जनकचंद्र सुरीश्वरजी म.सा. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश भाषाका योगदान डॉ. नामवर सिहजी - Jainism-a Universal Religion-B. M. Javeria My acquaintance with Swami Atmaram---Jwala Sahai Mishra. Shree Atmaramji and his many sided activities by Amarnath Audich Shree Atmaramji and his mission-by Chaitandas Suman Sanchaya---Gyandas Jain The Indian empire---Mr. Huntar-Huntar The man and his message---Baburam Jain The world's Parliament of Religious... Chicago U.S.A. Jain Education International XI For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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