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उसके दो भाग और बारह आरे -उनका स्वरूप-उनमें तीर्थंकरों की उत्पत्तिका समय-तीर्थंकर आत्मा द्वारा पूर्व जन्म कृत बीस कृत्यों के नाम-वर्णन; दो प्रकारका धर्म---श्रुतधर्म और चारित्र धर्म---- श्रुतधर्मान्तर्गत नवतत्व, षद्रव्य, षट् काय, (इसके अन्तर्गत चार भूत या चार तत्त्वों से चैतन्योत्पत्तिकी मान्यताका खंडन, पांच निमित्तसे सृष्टि रचना, पृथ्वी आदिका प्रवाहसे नित्यत्व आदिकी स्वरूप चर्चा), चार-गतिका वर्णन, सिद्धशिलाका स्वरूप, आठ काँका स्वरूप, (देवगुरु-धर्म, आत्मा-मोक्ष, जड़ चैतन्य, कर्म आदि विषयोमें) जैनोंको सामान्य रूपसे स्वीकार्य मंतव्य और अस्वीकार्य भान्यतओंका स्वरूप, आदिका वर्णन किया गया है। चारित्र धर्ममें साधु धर्मान्तर्गत संयमके सत्रहभेद, यतिधर्मके दस भेद, इत्यादि और गृहस्थ धर्मान्तर्गत अविरति सम्यग् दृष्टि गृहस्थका स्वरूप, उनको आचरणीय कृत्य, देशविरति श्रावकके जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट-भेदोंका स्वरूप वर्णन, बारह व्रतोंका स्वरूप, गृहस्थके अहोरात्रके कृत्य, त्रिकाल पूजनविधि आदिको समाविष्ट किया गया है। निष्कर्ष--"श्री आत्मानंदजी म.सा.के अगाध ज्ञानभंडारसे जैनधर्म तत्त्वोंके स्वरूपका इस कदर इसमें गुंफन हुआ है कि इसे 'तत्त्वपूंज' कहा जायतो कोइ अत्युक्ति नहीं"-इस कथनको चरितार्थ करनेवाला यह ग्रन्थ जैनधर्म तत्त्वोंसे संपूर्ण अनजान-बाल जिज्ञासुओं के लिए अति उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसके अध्ययनसे संपूर्ण जैनधर्मका सर्व साधारण परिचय हो सकता है।
- प्रश्नोत्तर संग्रह - ग्रन्थ परिचय-श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजी म.सा. द्वारा भारत देशके तत्कालीन जैन-जैनेतर समाज पर किये गये उपकारों के कारण उनकी कीर्तिपताका दिगंतव्यापी बन चूकी थी। अमरिका जैसे दूर देशो में भी आपकी सम्माननीय प्रतिभापूर्ण प्राज्ञताके प्रकाशकी प्रभा प्रसरी हुई थी, परिणामतः सर्व धर्म परिषद, चिकागो द्वारा भी आप आमंत्रित किये गये थे। वैसे ही योरपीय विद्वान प्रो.डॉ.रुडोल्फ हॉर्नलेका दृष्टि व्याप आप तक विस्तीर्ण बना और उन्होंने भी स्वयं के 'उपासक दशांग' आगम-सूत्रके अनुवाद और संशोधित विवेचनमें उपस्थित होनेवाली कुछ शंकाओंका समाधान प्रश्नोत्तर द्वारा आपसे प्राप्त करके कृतज्ञता अनुभूत की थी। उन प्रश्नोत्तरको समाजोपयोगी बनाने हेतु 'जैनप्रकाश' भावनगर, पत्रिकामें, पुस्तक ५-६के अंकोमें प्रकाशित किया गया था, जिसे पू.प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी म.साके शिष्य रत्न पू. श्री भक्तिविजयजी म. द्वारा संकलित करके श्री जैन आत्मवीर सभा, भावनगर-द्वारा वि.सं. १९७२में 'प्रश्नोत्तर संग्रह' नामक पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया। यह ग्रन्थ आचार्य प्रवर श्रीके 'पत्र साहित्य'का उत्तम संकलन बन पड़ा है। विषय निरूपण-इस संकलनमें डो.होर्नले द्वारा बारह पत्रोमें प्रश्न पूछे गये और विद्वद्वर्य आचार्य-देव द्वारा उन प्रत्येक प्रश्नों के संतोषप्रद, पूर्वाचार्यों के शास्त्र-ग्रन्थाधारित, शुद्ध प्रत्युत्तर दिये गये। उन प्रश्नों द्वारा जिन जिन विषयों को समावृत किया गया है वे प्रायः इस प्रकार है-श्रावककी ग्यारह पडिमाओंकी गाथा अर्थ और वहन करने की प्रक्रियाका स्वरूप, ओहीनाण
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