________________
अतीत, अनागत, वर्तमानकाल, का शुभाशुभ समय एवं तत्कालीन घटमान घटनाओंके संकेतकथन, विविध ग्रहोंकी दशा पर आधारित होता है।
ये दशायें प्रमुख रूपसे तीन प्रकारकी मानी गई हैं-अष्टोत्तरी, बीसोत्तरी, योगीनी। महादशाओंके इतिहास पर दृष्टिपात करनेसे ज्ञात होता है कि, प्राचीन कालमें 'योगीनी महदशा' फलादेश कथन किया जाता था, जो केवल नक्षत्राधारित होता था। आर्द्रासे प्रारम्भ करके, (तीनों-पूर्वा, उत्तरा नक्षत्रोंको भिन्न नहीं-एक मानकर कुल चौबीस नक्षत्रोंमें और छत्तीस वर्षमें आठ दशाओंको विभाजित की जाती थी।
कालक्रमसे आठ दशा, सत्ताईश नक्षत्र और आठ ग्रहोंकी गिनती करके कुल एक सौ । आठ वर्षों में इनको विभाजीत किया जाने लगा।
इन आठ ग्रहोंका निश्चित क्रम और प्राभाविक समय सूर्य-६ वर्ष, चंद्र-१५ वर्ष, मंगल८ वर्ष, बुध-१७ वर्ष, शनि-१० वर्ष, गुरु १९ वर्ष, राहु-१२ वर्ष और शुक्र २१ वर्षका निश्चित किया गया है। जिसे 'अष्टोत्तरी महदशान्तर्गत' माना जाता है। 'बीसोत्तरी महादशा'के कुल एक-सौ बीस साल होते हैं। नव ग्रहोंके प्राभाविक समयके मध्य इन एकसौबीस वर्षोंको विभक्त किया जाता है। इन नव ग्रहोंका निश्चित क्रम और प्राभाविक समय केतु-७, शुक्र-२०, सूर्य६, चंद्र-१०, मंगल-७, राहु-१८, गुरु-१६, शनि-१९ और बुध-१७ वर्षका निश्चित किया गया
वर्तमानमें योगीनी महादशाधारित फलादेश कथन नर्हिवत् अर्थात् बहुत ही कम-क्वचित् ही किया जाता है।
जातकके आयुष्यके जिस वर्ष में जिस ग्रहकी दशा चल रही होती है, उस समयमें वह ग्रह उस व्यक्तिके जीवन प्रसंगोंको प्रभावित करता है याने शुभाशुभ फल-प्रदान करता है। जैसे पचीस वर्षकी आयुके समय सूर्यकी महादशा प्रारंभ होती है, तब उस व्यक्तिके पचीससे इकत्तीस वर्ष तकके आयु समयमें उसका जीवन सूर्यसे और उससे संबंधित ग्रहों द्वारा प्राप्त शुभाशुभ फलसे प्रभावित होता रहता है।
सूक्ष्मसे सूक्ष्म, निश्चित फलादेश-कथन इन दशाओंके अवान्तर भेद-महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, प्राणदशा, सूक्ष्मदशादिके गाणितिक एवं तार्किक परिणामों पर आधारित होता है। गोचर :- विभिन्न राशियोंमेंसे भिन्न भिन्न ग्रहों के दैनिक भ्रमणकों 'गोचर' नामसे पहचाना
जाता है, जिससे वर्तमानकी शुभाशुभ घटनाओंका कथन किया जाता है। अव ज्योतिष शास्त्रके मुख्य सहयोगी 'पंचाग' का परिचय दिया जाता है। पंचाग :- पंचांग अर्थात् पाँच अंगोका समूह-यथा-तिथि, वार (दिन) नक्षत्र, योग, करण।
इन पाँचों अंगोका आधार सूर्य और चंद्रकी गति और स्थिति पर होता है। तिथि - सूर्य और चंद्रके मध्य अंतर दर्शित करानेवाली संज्ञा। सूर्य-चंद्रके गति भेदके
कारण प्रत्येक तिथिको पूर्ण होने में कमसे कम बीस और ज्यादा से ज्यादा
(102)
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org