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व्रत-दो भेद व्यवहार और निश्चय सचित्तादिका त्याग या परिमाण बाईस अभक्ष्य और बत्तीस अनंतकाय एवं मांस-मधु मक्खनादिके अभक्ष्य होनेके कारणादिकी जैन एवं जैनेतर दर्शन प्रन्थाधारित विस्तृत चर्चा मदिरापानके ५१ दूषण और मांस भक्षणके अनेक दूषण, प्रतिदिन श्रावक योग्य करणीय चौदह नियम, पंद्रह कर्मादान और पांच अतिचारोंका निरूपण किया गया है। (८) अनर्थदंड विरमण व्रत- धनवृद्धि धनरक्षा-परिवारादिकी पालना स्वइन्द्रिय भोगोपभोग करते हुए पापके कारण जीव जो दंड भोगे वह अर्थ दंड और इसके अतिरिक्त अपध्यान आर्तध्यान, रौद्रध्यान, पापोपदेश, हिंस्र शस्त्रादि प्रदान, प्रमादाचरणादि चार प्रकारके अनर्थ दंडके त्यागकी प्रेरणा एवं पांच अतिचार स्पष्ट किये हैं। (९) सामायिक व्रत- आत्मानुभव एवं सहजानंद प्रकटीकरण अभ्यासरूप शिक्षाव्रत-सामायिककी विधि, उससे लाभ, उसमें लगनेवाले बत्तीस दोष और पांच अतिचारोंका कथन किया गया है। (१०) देशावकाशिक व्रत - दिग्परिमाणादि व्रतों का मर्यादित समयके लिए संक्षेप यह देशावकाशिक व्रत कहा जाता है। इसके आणवण प्रयोगादि पांच अतिचार दर्शाये हैं । (११) पौषधोपवास व्रत- आहारादि चार प्रकारके त्यागसे आत्मिक गुणों का पोषक पौषध; कर्मरूप भवरोगकी भावौषधि रूप पर्व दिनों में आराध्य हैं, जिसमें लगनेवाले पांच अतिचार और अठारह दूषण त्याज्य हैं। (१२) अतिथि संविभाग व्रत- अकस्मात् आये हुए पात्रतायुक्त, माधुकरीसे उदरपूर्ति कर्ता, अतिथिको पांच गुण युक्त उत्तमदाता निर्दोष शुद्धाहार भक्तिपूर्वक प्रदान करें। इसके भी पांच अतिचार वर्ज्य कहे हैं। निष्कर्ष इस प्रकार पांच अणुव्रत, उनको गुण ( वृद्धि) कर्ता तीन गुणव्रत एवं उन व्रतोंमें स्थिर करनेवाले शिक्षाप्रदाता चारव्रत एवंकार बारह व्रतोंकी योगशास्त्रादिके अवलंबनसे प्ररूपणा हुई है।
नवम परिच्छेद:- धर्मतत्त्व (स. चरित्र) स्वरूप निर्णय -
धर्म स्वरूपान्तर्गत मोक्षमार्गोपकारी एवं उपादेय स. चारित्रके स्वरूप निर्देशान्तर्गत श्रावकके पांच कर्तव्यदिन-रात्रीकृत्य, पर्वकृत्य, चातुर्मासिक कृत्य, सांवत्सरिक कृत्य और जन्मकृत्यका विवरण किया जा रहा है। इनमेंसे इस परिच्छेदमें दिनकृत्यका वर्णन किया है-यथा
दिनकृत्य-प्रतिदिन अल्प निंद्रा लेकर ब्रह्म मुहूर्तमें जागना आत्म चिंतवन- श्रीनमस्कार महामंत्रका हृदय कमलबंद जाप प्रतिक्रमण आयुवृद्ध एवं गुणादि वृद्धों की भक्ति वैयावृत्त्य ज्ञान, ध्यान और स्वाध्यायव्रत- (चौदह) नियम धारणा सम्यक्त्व युक्त द्वादश व्रतादिका पुनः स्मरण द्रव्य एवं भावसे जिनपूजागुरुवंदन - जिनवाणी श्रवण-अनुकूल प्रत्याख्यानादि धर्मकरणी आत्मव्यापार- पश्चात् आजिविका के लिए अर्थोपार्जन रूप व्यापार सुपात्रदान-साधर्मिक भक्ति- पंचपरमेष्ठि स्मरणपूर्वक रसवतीकी साम्यता सहित- गृद्धि आसक्ति रहित भोजनः भोजन पश्चात् करने योग्य कार्य सायंकाल श्री नमस्कार महामंत्र स्मरण - देव गुरुवंदन - प्रत्याख्यान षट् आवश्यक पठन पाठन गुरुवैयावृत्त्य, परिवारके साथ धर्मचर्चा चारों आहार त्याग रूप प्रत्याख्यान करके दिनगत कृत्य समाचरणके विवरणको सम्पन्न किया है। इनके साथही श्रावक योग्य कई सैद्धान्ति विषयों की प्ररूपणा भी की है। सैद्धान्तिक प्ररूपणा -- पृथ्वी आदि पांच तत्व-सूर्य-चंद्र नाड़िका स्वरूप और लाभालाभ, शुभाशुभ
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