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संन्यस्त जीवन प्राप्तिके योगादिका निर्देश मिलता है। सप्तमेश सूर्य द्वितीय स्थानमें प्रबल योगकारक शुक्रके साथ और त्रिकोणाधिपति पंचमेशबुधके साथ युति सम्बन्धसे स्थित है। और गुरुकी नवम-पूर्ण -दृष्टि से दृष्ट है, जिससे विश्वविख्यात प्रसिद्धि प्राप्त होती है। जैसे- पू. श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजी महाराज 'विश्व धर्म परिषद' में आमंत्रित किये जाते हैं। आपसे शिक्षाप्राप्त श्री वीरचंदजी गांधी चिकागोमें आपके नामको चार चांद लगानेवाली प्रतिभासे विश्वके विद्वान सज्जनोंमें भी आपसे प्राप्त ज्ञान-ज्योतिको प्रकाशित एवं प्रसारित करके आपका सम्माननीय स्थान प्रस्थापित करके प्रसिद्धि दिलाते हैं।
इस स्थानमें एक भी ग्रह बिराजमान नहीं हैं, न तो किसी पापग्रह की दृष्टि हैं। आध्यात्मिक राहके राहीको दाम्पत्य सुखका प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता है। उनके लिए तो संन्यस्तकारी योग-जो साधु जीवनकी स्वीकृति और स्व-पर कल्याणकारी संकेत देता है-महत्त्वपूर्ण है। आपकी कुंडलीमें भी शनि-चंद्रकी प्रतियुति; उच्चके तीन ग्रह, सूर्य-गुरुके-दृष्टि संबंध, भाग्येश (प्रबल योगकारक शुक्र) से शनिका मित्रसंबंध, भाग्य भुवनमें शनि केतुकी युति, उच्चका लग्नेश नवम (त्रिकोण) स्थानमें, 'अनफा'योग, बारहवें स्थान पर गुरुकी दृष्टि आदि ऐसे ही संन्यस्तकारी योग प्राप्त होते हैं (साथियों के सहयोगका विवरण चतुर्थस्थानान्तर्गत विश्लेषणानुसार ज्ञातव्य) अष्टम स्थान आयुष्य, गूढ़ विद्या प्राप्ति, लम्बी बिमारी आदिकी ओर संकेत करता है। अष्टमेश बुध 'नीचभंग' योगसे और उच्चके प्रबल योगकारक शुक्रके साथ एवं सूर्यके साथ युति संबंधसे युक्त धर्मस्थानमें स्थित है, जिस पर उच्चके गुरुकी नवम-पूर्ण-दृष्टि है। इसके अतिरिक्त अष्टम स्थान पर सूर्य-बुध शुक्रकी पूर्ण दृष्टि है। स्वगृह दृष्टा बुधकी दृष्टि से जातक आयुष्यवान और गूढ़ विद्याधारी होता है -जैसे- अंबाला शहरमें श्री सुपाश्वनाथजी के मंदीरजीकी प्रतिष्ठा प्रसंग पर गूढ़ विद्याशक्ति के ही प्रभावसे घनघोर बादलोंको बिखेर कर महोत्सवकी रौनक एवं श्री संघका उत्साह वर्धन किया। ३०
नवम-भाग्य-भुवन त्रिकोणमें अत्यधिक महत्त्वपूर्ण-बलवान माना जाता है। यह स्थान धर्म एवं भाग्य संबंधित फल प्रदाता माना गया है। इस स्थानमें, उत्कृष्टताकी पराकाष्टा पर पहुँचानेवाला केतु, केन्द्राधिपति (लग्नेश)- तुलाके उच्चके शनिके साथ युति संबंध रखता है; फल स्वरूप भाग्य भुवनका उत्तमोत्तम फल प्रदान करता है। "शनि-चंद्रका दृष्टि संबंध जातकको संयमी, ब्रह्मचारी, दूरंदेशी, अनुशासन प्रिय, नीडर लोहपुरुष, कलाकार, बनाता है।" शनि की राहु से प्रतियुति आध्यात्मिक उन्नतिमें बल देती है। जातकको गूढ विद्या एवं साधुताके लिए आकर्षण होता है। प्रायः दो सदियोंसे तपागच्छगगनांगन सर्वोच्च पद-आचार्य पद धारी से विरहित था। भारतवर्षके समस्त श्री संघोंकी, इस पदके लिए आपको ही यथासुयोग्य समझकर, अत्यन्त सम्मान एवं आग्रहपूर्ण विनंति से इस उत्कृष्ट-महत्तम पद पर अलंकृत होनेका सौभाग्य पालीतानामें, सकल संघ समक्ष, प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त नवम स्थान स्थित उच्चके शनिके कारण, आप निरभिमानी, मिलनसार, मधुरभाषी, परोपकारी, दीर्घदृष्टा, व्यवहारदक्ष,
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