Book Title: Satya Dipak ki Jwalant Jyot
Author(s): Kiranyashashreeji
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 144
________________ पढ़ा। जिससे नवीन ज्ञान ज्योतिके उदयसे सत्यमार्गके दर्शन होनेसे भविष्यके जीवनराह पर जबरदस्त परिवर्तनकारी प्रसंगोकी परम्पराका प्रारम्भ हुआ। ४. द्वितीय स्थान स्थित प्रबल योगकारक उच्चके शुक्र परसे गुरुका भ्रमण होता है तब जीवनमें महत्वपूर्ण यादगार प्रसंग उपस्थित होते हैं। यह भ्रमण योग आपके जीवनमें नव, इक्कीस, तैतीस, पैंतालीस, सत्तावन सालकी उम्रमें हुआ था, परिणामतः A. जब आप नव वर्ष के थे, तब गणेशचंद्रका अंगज़ स्व-गृहकी रक्षाके लिए हाथमे नंगी तलवार लेकर खड़े हो गए-जो आपके निर्भीक-पराक्रमी व्यक्तित्वका परिचायक था। B. इक्कीस वर्षकी आयुमें आपको बार बार व्याकरणाध्ययनके लिए विभिन्न व्यक्तियों द्वारा प्रेरणा दी गई, लेकिन आपने ध्यान ही न दिया, जिसका अफसोस आपको जीवन-पर्यंत रहा। C. तैतीसवें सालमें आपने पूज्य श्री अमरसिंहजीके मेज़रनामा और समुदाय बाहर करनेके गुप्त कारनामों को ललकारा और पंजाबमें जाकर अनेक स्थानों पर विचरण करके और उपदेश देकर श्रावक समुदायकी श्रद्धाको सम्यक् एवं स्थिर किया। पश्चात् मालेरकोटला का चातुर्मास यादगार और यशस्वी हुआ, जिसमें आपको आशातीत सफलता प्राप्त हुई। पंजाबका प्रत्येक स्थान-क्षेत्र-आपके आगमन और स्वागतके लिए लालायित बना हुआ था। D. पैंतालीस सालकी उम्रमें होशियारपुरके चातुर्मासमें आपकी ग्रंथरचनाओं में से . जो सर्वोत्कृष्ट रचना 'जैन तत्त्वादर्श' की रचना की; जिसे जैन धर्मकी 'गीता' कहा जा सकता है। E. उम्रकी सत्तावनवीं साल आपकी जीवन-किताबका स्वर्णिम पृष्ठ है। इसी वर्ष आपको आंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। इसी वर्ष चिकागोंमें आयोजित विश्व धर्म परिषदमें पहुँचनेका सादर आमंत्रण प्राप्त हुआ। जैन साधु मर्यादाको जानकर आपके प्रतिनिध एवं अक्षर देह को आमंत्रित किया गया। अतः श्री वीरचंदजी गांधी आपके अक्षर देह और ज्ञान प्रकाश को लेकर वहाँ पहुँचे और विश्व स्तरीय अनन्य प्रख्याति प्राप्त करवायी। ५. द्वितीय स्थान स्थित प्रबल योगकारक उच्चके शुक्र पर गुरुकी दृष्टि होने से जीवनमें सफलता प्राप्तयादगार महत्त्वपूर्ण प्रसंग घटित होते हैं। यह परिभ्रमण आपके जीवन के सोलह-तेईस-सत्ताईस-उनचालीसइक्यावनवें वर्षमें हुआ था जिसके कारण - A. सोलहवें वर्ष में स्थानकवासी गुरु गंगाराम और जीवनरामजीका सत्संग प्राप्त हुआ। आपको संसारकी असारताका भान हुआ और साधु जीवन जीने का आपने निश्चय किया। B. तेईसवें वर्ष में आपने बत्तीस आगमोंका अभ्यास संपूर्ण करके विद्वज्जगतमें शास्त्रों के सर्वेसर्वा-पारंगतके रूपमें ख्याति प्राप्त की। इसी वर्ष रतलाममें सूर्यमलजी कोठारीजीको 'आगमों की संख्या' विषयक वाद में अकाट्य तर्क एवं युक्तियों से निरुत्तर करके जीवनमें प्रथमबार 'वाद विजयी' बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। C. सत्ताईस वर्षकी आयुमें आपके आग्राके चातुर्मासमें सन्त श्री रत्नचंद्रजीसे समागमका लाभ हुआ। आपने अपने मनकी अनेक आशंकाओंका दिल खोलकर आगमोक्त पाठों के (117) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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