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शरीर में नाडियाँ अधिक और अनवरत रक्ताभिसरण होनेसे अत्यन्त शक्तिशाली, वीर्यवान, शौर्यवान थे-तो कला रसिकता अर्थात् नैसर्गिक रूपसे ही चित्र-संगीतादि कलाओमें अभिरुचि युक्त प्राविण्यके मालिक थे; 'नीचभंग' योग प्राप्त बुधके कारण वाक्पटुता, बुद्धिचातुर्य, कार्यदक्षता भी आपको प्राप्त थी। जैसे- खेलनेके लिए ताशके पत्ते एक बार देख लेने पर हूबहू स्व-हस्त चित्रित बना लिए, तो खेल खेलमें जोधाशाहजीके मकानको चित्रित कर उसमें जोधाशाहजीकी तसवीरको उभारने वाले देवीदासने चित्रकारिता किसीसे सिखी नहीं थी। बिना अभ्यासके ही उनके स्वर-लयध्वन्यादि परका आधिपत्य बडे बडे उस्ताद-संगीतज्ञोंने भी महती प्रसंशा के साथ स्वीकार किया था। उनके प्रवचन भी मेघ-ध्वनिसे गंभीर-एक सूर-लय प्रवाहमें बहते थे।
पूज्य अमरसिंहजीके मेजरनामा पर हस्ताक्षर करानेके लिए आये हुए पन्नालालादिको ठंड़े आक्रोशपूर्ण एक ही वाक्यसे शांत कर दिया। वाक्पटुताके कारण ही उनके साथ जो वाद या विवादके लिए उपस्थित होते थे, जो जीतनेके लिए आते थे वे हारकर जाते थे। २५ द्वितीय स्थानसे किया जानेवाला वाणी-धन-परिवारादि संबंधित फलादेश :
धन भावमें सूर्य, नीचभंग प्राप्त बुध और प्रबल योगकारक उच्चका शुक्र बिराजमान हैं। ये तीनों ग्रह एवं द्वितीय स्थानमें स्वगृह अर्थात् मीनराशि, उच्चके गुरुकी (नवम)पूर्ण दृष्टि से दृष्ट हैं। अतएव जातकको कलाप्रिय एवं कलाभिज्ञ बनाती हैं। साथमें धनवाणी-परिवारका पारावार सुख मिलता है। वाणीमें मानो साक्षात् सरस्वतीका वास भासन होता है। मीन राशि, जल तत्त्वकी होने के कारण अंतःकरणको धक्का लगानेवाली पारिवारिक जनों की समस्याओं के कारण उनसे मनःदुःख होता है, लेकिन स्वगृह दृष्टा गुरु आत्मविश्वाससे झंकृत, गंभीर-मधुर वाणीसे समाधान देकर परिस्थितिका सुधार कर लेता है। बुध पर गुरुकी दृष्टि एवं नव-पंचम योग, जातकको व्यावहारिक, तुलनात्मक, निर्णय शक्ति और न्याय-प्रियता, प्रभाविकता, दूढ़ता, ओजस्विता, गहनता, धैर्य, ज्ञानयुक्त-गरिमामयी साहित्यिकता और कवित्व शक्ति बक्षती है; तो बुधकी प्रबल योगकारक उच्चके शुक्रसे युतिके कारण वाणीमें रसिकता, और शत्रुको वश करनेवाली चुंबकीय-मोहक प्रभावकता आती है। अतएव उनको जीतने के लिए आनेवाला स्वयंजीता जाता है। प्रबल योगकारक उच्चका शुक्रा धन भावमें शुभफल प्रदाता होनेसे धार्मिक, सामाजिक या साधर्मिकादि के कार्य हेतु अथवा अन्य आवश्यकता हेतु धनप्राप्ति अत्यन्त सरलतासे हो जाती है-जैसे(१) संवत १९४० में गणिवर्य श्री मूलचंदजी महाराज (आपके बड़े गुरु भाई) के साथ (आपके शिष्य) मुनिश्री हंसविजयजीकी छेदोपस्थापनीय-बड़ी दीक्षाके कारण थोडा-सा मन मुटाव हुआथा, लेकिन संवत १९४१ में आपने अहमदाबादमें गणीवर्यश्री को आमंत्रित करके अनन्य स्वागत एवं क्षमा प्रार्थनाके साथ अन्य शिष्योंके योगोद्वहनकी किया और बड़ी दीक्षादि उनसे ही करवाकर परिस्थितिको सुधार लिया। (२) आपकी ज्ञान-गरिमा युक्त गंभीर-ओजस्वी-चुंबकीय चमत्कार के प्रभावसे प्रभुत्व-प्राप्त वाणी भावनगर के राजा, लिम्बड़ी नरेश, बिकानेर नरेश, जोधपुर के नवाब और उनके भाई आदि अनेक राजा-महाराजा;
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