________________
'नीच भंग' प्राप्त-बलवान सूर्य से युति संबंधसे युक्त-उच्चके गुरु से दृष्ट और गुरु से नवपंचम योग करनेवाला बुध है।
षष्ठम स्थानमें कर्क राशिमें गुरु उच्चका और मंगल नीचका स्थित है। लेकिन उच्चके गुरुसे युति संबंधके कारण नीचभंग-राजयोग होता है। नीचभंग मंगल पर पूर्ण बलवान लग्नेश (शनि) की भाग्य स्थानसे दसम-पूर्ण-दृष्टि, चंद्र-मंगलका परिवर्तन योग बलवान उपचय योग होता है।
सप्तम (कें द्र) स्थानमें कोई भी ग्रह नहीं है। सिंह राशि स्थित है। सप्तमेश सूर्य, शुक्र-बुधसे युति संबंधसे और उच्चके गुरुसे दृष्ट है।
अष्टम स्थानमें कन्या राशि स्थित है। अष्टमेश बुध की उपरोक्त परिस्थितिके अतिरिक्त स्वगृह दृष्टा है। सूर्य-शुक्रकी भी सातवीं पूर्ण दृष्टि हैं। इस स्थानमें ग्रह एक भी नही है।
नवम-भाग्य (त्रिकोण) स्थानमें बिराजित केतु लग्नाधिप शनिसे युति संबंध से युक्त है। शनि-चंद्रकी प्रतियुति है। शनि तृतीय पूर्ण दृष्टि से लाभ स्थानको देखता है।
दसम-कर्म (केंद्र) स्थानमें ग्रह नहीं है। नीचभंग प्राप्त कर्मेश त्रिकोण स्थानके शनि और केतुको चतुर्थ-पूर्णदृष्टि से देखता है।
एकादश (लाभ) स्थानमें कोई ग्रह नहीं है। धनराशि स्थित है, जिसका स्वामी गुरु है। उच्चका शनि तृतीय पूर्ण दृष्टि से लाभ स्थानको देखता है।
द्वादश स्थानमें कोई ग्रह नहीं है। मकर राशि स्थित है जिसका स्वामी-शनि-लाभ स्थानको देखता है, तो मंगल और गुरुकी भी पूर्ण दृष्टि है। प्रथम भावसे प्राप्त फलस्वरूप बाह्याभ्यंतर व्यक्तित्व-चारित्र-आरोग्य-स्वभावादिका विश्लेषणःA. कुंभलग्न-होनेसे-लग्नेश (शनि) और स्थिर एवं वायु तत्त्वकी राशिका लग्न होनेसे-पूज्य गुरुदेव श्री आत्मानंदजी महाराज अत्यन्त विचारशील फिर भी दृढ मनोबली थे। जैसे - 'स्थानकवासी पंथ सत्यसे दूर है'- इसका एहसास होने पर भी उस पर पांच-सात वर्ष तक वार-वार चिंतनमनन-अध्ययनादि करते रहे; अंतमें श्री रत्नचंद्रजी महाराजजीसे भी अच्छी तरह परामर्श कर लेनेके पश्चात् इस निर्णयको स्वीकार किया। इतना ही नहीं जीवनकी अंतिम सांस तक, अनेकविध कष्ट-कठिनाइयोंके आंधीतूफानके बीचभी, अंगीकृत निर्णयको यथाशक्ति परिपालित किया-प्रचारित किया -प्रसारित किया। सर्वस्व समर्पित कर दिया था। B. लग्नेश (शनि), उच्चका (तुला राशिका), बलवान बनकर, धर्मभुवन (भाग्यस्थान) में बिराजित होने से पूज्य गुरुदेवको सुवर्णकी भाँति अग्नि परिक्षामें कसकर आत्मिक-शुद्धि प्रदान करता है -सुगंधित सुवर्णका स्थान प्रदान करता है। फल स्वरूप पूज्य गुरुदेव चमत्कारिक, एवं चूंबकीय अध्यात्म शक्तिके सम्राट, अभूतपूर्व आत्म विश्वासी, उत्कृष्ट चारित्रवान, प्रखर वैराग्यवान, धर्मके अत्यधिक अनुरागी, सत्त्वगुणी, कुशाग्र बुद्धि, तत्त्ववेत्ता,
(106)
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org