Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam Author(s): A M and Company Publisher: A M and Company View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६ ) लीने पोताना खप जेटलो ज थोडी थोडो रस ले छे; परन्तु अहीं काळरूप असंतोषी भमरो तो पृथ्वीरूप कमळमाथी समग्रलोकरूप रसने अनेक प्रकारनी व्याधिओ अने वेदनाओ रूप क्रूरपणुं वापरी चूसी ले छे, एटले के-ते क्रूर काळ कोइ पण प्राणीनुं भक्षण कर्या विना रहेतो नथी. लोकोमा एवं कहेवाय छे के - आ समग्र पृथ्वीने शेषनागे पोताना मस्तक उपर उपाडी राखी छे. आवी लोकोतिथी अहीं पृथ्वीरूप कमळनुं शेषनागरूप नाळवं कयुं. वळी जेम कमळमां केसरा होय छे तेम अहीं पृथ्वीरूप कमळने पर्वतो रूप केसरा कह्या, अने दस दिशाओ मोटा मोटां पांदडांओने ठेकाणे समजवी. आवा पृथ्वीरूप मोटा कमळमांथी लोकरूप रसने निरन्तर पीतां पण काळरूप भमरो हजु सुधी तृप्त थयो नहीं, तृप्त थतो नथी, अने तृप्त थशे पण नहीं !. माटे हे भव्यप्राणीओ ! काळरूप असन्तोषी भमराना आस्वादनमां न अवाय एवा आत्मस्वरूप पामवाना साधनमाटे प्रमाद त्यागी उद्यम करो ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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