Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२२) जम्मदुक्खं जरादुक्खं, रोगा य मरणाणि य । अहो! दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसन्ति जंतुणो॥३३॥
हे जीव ! आ जगत्मा जन्मनु दुःख, घडपणर्नु दुःख, अनेक प्रकारनां रोगोनां दुःख, तथा अनेक प्रकारनां मरणनां दुःख छे. अरे! आ संसार खरेखर दुःखमय छे, जेनी अंदर प्राणीओ अनेक प्रकारना क्लेशो भोगवी रह्या छे. आवा जन्म-मरणादि अनेक प्रकारनां दुःखो अनुभवता छतां तेमां आसक्त थइ रह्या छे ए महा आश्चर्य छे! ॥३३॥ जाव न इंदियहाणी, जाव न जररक्खसी परिप्फुरई। जाव न रोगविआरा, जाव न मच्चू समुल्लिअई॥३४॥
हे जीव ! ज्यां सुधी इन्द्रियो क्षीण थइ नथी, ज्यां सुधी जरा रूपी राक्षसी व्यापी नथी, ज्यां सुधी रोगविकारो प्रगट थया नथी, अने ज्यां सुधी काळना पा
* जन्मदुःखं जरादुःखं, रोगाश्च मरणानि च ।
अहो ! दुःखो हि संसारो, यत्र क्लिश्यन्ते जन्तवः ॥ ३३ ॥ + यावद् नेन्द्रियहानिर्यावन्न जराराक्षसी परिस्फुरति । यावद् न रोगविकारा, यावद् न मृत्युः समुच्छ्ष्यिति ॥ ३४ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75