Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६) अग्निथी बळवा मांड्युं छे छतां तेमा हुं केम सूइ रह्यो छु?, अने तेमां बळता आत्मानी शा माटे उपेक्षा करूंछु?" । आ प्रमाणे विचारी श्रीवीतराग धर्मर्नु आचरण करी दिवसो सफळ कर, अने प्रमाद त्यागी आत्मसाधन करी ले.॥३९॥ जाँ जा वच्चइ रयणी, न य सा पडिनियत्तइ । अहम्मं कुणमाणस्स, अहला जन्ति राइओ ॥ ४० ॥ जे जे रात्रि-दिवस जायछे ते पाछा आवता नथी. धर्मने नहीं करनार प्राणीना रात्रि-दिवसो निष्फळ जाय छे. जेटलो समय धर्मकरणीमां जाय छे तेटलो ज सफळ थाय छे, माटे हे जीव ! धर्मकरणी विनाना तारा दिवसो पशुनी जेम निष्फळ जाय छे तेनो विचार कर, अने जाग्या त्यांथी सवार गणी धर्मकरणीमां दत्तचित्त था, के जेथी दुर्लभ मनुष्यभव सार्थक थाय. ॥ ४० ॥ जस्सऽथि मच्चुणा सक्खं, जस्स अस्थि पलायणं । * या या ब्रजति रजनी, न च सा प्रतिनिवर्तते । अधर्म कुर्वतोऽफला यान्ति रात्रयः॥ ४०॥ + यस्याऽस्ति मृत्युना सख्यं, यस्याऽस्ति पलायनम् । For Private And Personal Use Only

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