Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
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(५६) हे जीव ! तुं तिर्यंच भवमा हतो, के जे वखते तार शरीर मजबूत हतुं तो पण अटवीमां शीयाळानी सख्त ठंडीमा हिम पडवाथी तारो देह फाटी गयो-भेदाइ गयो!, अने पोष महिनानी कडकडती टाढथी अटवीमां अनन्तीवार मरणने शरण थयो, ते दुःख संभार. ॥८॥ वळी रे आत्मा! तुं तिथंच भवमां घोर जंगलने विषे उनाळाना आकरा तापथी तप्त थइ-विह्वल बनी भूख्यो तरस्यो घणो ज खेद पामतो मरणदुःख पाम्यो !. ॥ ८१॥ वळी हे चेतन ! तुं वर्षा ऋतुमा तिर्यंचभवमा भयानक अरण्यने विष पर्वतोना धोधमार पाणीमां तणातो-अथडातो-बूडतो अने ठंडा पवनथी जकडाइ गयेलो घणी वखत मृत्यु पाम्यो.. ॥ ८२॥
आवी रीते अतिभयानक भवरूपी अरण्यमा तिर्यच भवोने विषे असह्य लाखो दुःखो भोगवी केश पामतो आ जीव अनन्ती वार वस्यो. शियाळामां जंगलने विषे असह्य ठंडीथी अनन्ती वार मृत्युने शरण थयो !, उनाळाना आकरा तापथी तप्त थइ भूख्यो तरस्यो मरी गयो', अने वरसाद ऋतुमां पाणीमां तणातो अथ
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