Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६) हे जीव ! तुं तिर्यंच भवमा हतो, के जे वखते तार शरीर मजबूत हतुं तो पण अटवीमां शीयाळानी सख्त ठंडीमा हिम पडवाथी तारो देह फाटी गयो-भेदाइ गयो!, अने पोष महिनानी कडकडती टाढथी अटवीमां अनन्तीवार मरणने शरण थयो, ते दुःख संभार. ॥८॥ वळी रे आत्मा! तुं तिथंच भवमां घोर जंगलने विषे उनाळाना आकरा तापथी तप्त थइ-विह्वल बनी भूख्यो तरस्यो घणो ज खेद पामतो मरणदुःख पाम्यो !. ॥ ८१॥ वळी हे चेतन ! तुं वर्षा ऋतुमा तिर्यंचभवमा भयानक अरण्यने विष पर्वतोना धोधमार पाणीमां तणातो-अथडातो-बूडतो अने ठंडा पवनथी जकडाइ गयेलो घणी वखत मृत्यु पाम्यो.. ॥ ८२॥ आवी रीते अतिभयानक भवरूपी अरण्यमा तिर्यच भवोने विषे असह्य लाखो दुःखो भोगवी केश पामतो आ जीव अनन्ती वार वस्यो. शियाळामां जंगलने विषे असह्य ठंडीथी अनन्ती वार मृत्युने शरण थयो !, उनाळाना आकरा तापथी तप्त थइ भूख्यो तरस्यो मरी गयो', अने वरसाद ऋतुमां पाणीमां तणातो अथ For Private And Personal Use Only

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