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(६१)
छे. जेम फांसीनी सजा पामेलो अपराधी जेम जेम फांसी सन्मुख डगलां भरेछे तेम तेम तेने मृत्यु नजीक आवतुं जाय छे, अने तेथी तेने खान-पानादि काइ पण गोठतुं नथी, कारण के तेणे जाण्युं छे के मृत्यु नजीक आवतुं जायछे तेम हे चेतन! तारी पण जेम जेम उम्मर जायछे तेम तेम मृत्यु नजीक आवतुं जायचे, आवी रीते दिवस पर दिवस जतां आयुष्य झपाटामां पूर्ण थशे त्यारे मरणने शरण थ, पडशे!. माटे प्रमाद त्यागी परलोक साधवाने सावधान था, के जेथी मरणसमये पश्चात्ताप करवानो समय न आवे. ॥९॥ रे जीव ! बुज्झ मा मुज्झ मा पमायं करेसि रे पाव!। जंपरलोए गुरुदुक्खभायणं होहिसि अयाण ! ॥११॥ __ अरे जीव! बुझ बुझ, मोह न पाम. रे पापी! हवे धर्मकार्यमांप्रमाद न कर. हे अज्ञानी ! प्रमाद करीश तो परलोकमां घोर असह्य दुःखो तारे ज भोगवां पडशे. माटे दुर्लभ मनुष्यभवमा चिन्तामणि समान जिनधर्म
* रे जीव | बुध्यख मा मुह्य मा प्रमादं कुरु रे पाप! ।
यत् परलोके गुरुदुःखभाजनं भविष्यसि अज्ञान ! ॥ ९१॥
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