Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिच्छे अणंतदोसा, पयडादीसन्ति नविय गुणलेसो। तह वियतं चेव जिया, ही मोहंधा निसेवन्ति ॥९८॥ - श्रीजिनेन्द्रभाषित धर्मने विषे प्रत्यक्ष अनन्त गुणो छे, अने दोषनो लवलेश पण नथी. आवो गुणोनो भंडार अने निर्दोष जिनधर्म छे, तो पण अज्ञान वडे अंध थयेला प्राणीओ तेने विषे चित्त लगावता नथीजोडाता नथी!. ॥ ९७ ॥ मिथ्यात्वमां अनंत दोषो प्रगट पणे देखाय छसाक्षाद् अनुभवीए छीए, अने गुणनो लवलेश पण दृष्टिगोचर थतो नथी, तो पण अफसोस छे के-मोह वडे अंध थयेला प्राणीओ ते मिथ्यात्वने ज सेवेछे !. ॥९॥ घिद्धी ताण नराणं, विन्नाणे तह कलासु कुसलत्तं । सुहसच्चधम्मरयणे, सुपरिक्खं जे न जाणन्ति ॥ ९९ ॥ परलोकमां कल्याणकारी अने सुख आपनार एवा सत्य धर्मरत्ननी जेओ सारी रीते परीक्षा करी जाणता * मिथ्यात्वेऽनन्तदोषाः, प्रकटा दृश्यन्ते नाऽपि च गुणलेशः । तथापि च तदेव जीवा, ही ! मोहान्धा निषेवन्ते ।। ९८॥ + धिग् धिक् तेषां नराणां, विज्ञाने तथा कलासु कुशललम् । शुभ-सत्यधर्मरत्ने, सुपरीक्षां ये न जानन्ति ॥ ९९ ॥ For Private And Personal Use Only

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