Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६४ ) स्थिर अने शाश्वतो जो धर्म उपार्जन थायछे तो मळ्युं ?, अर्थात् धारेलो लाभ मळ्यो कहेवाय. वळी मळ - मूत्रथी भरेला आ मलिन शरीर वडे निर्मळ धर्म उपार्जन थाय तो शुं बाकी रह्युं ? - शुं अपूर्णता रही ?अर्थात् महान् लाभ मळयो कहेवाय. वळी अनेक प्रकारमा रोग विगेरेने आधीन - परतन्त्र एवा आ देह वडे स्वाधीन - स्वतंत्र एवो धर्म जो उपार्जन थाय तो शुं कांइ मळवानी खामी रही कहेवाय ?, अर्थात् इच्छेलो लाभ मळ्यो ज कहेवाय. अस्थिर मलिन अने पराधीन एवा आ असार देह वडे स्थिर निर्मळ अने स्वाधीन वो जो धर्म उपार्जन थइ शके छे, तो हे आत्मन् ! आवेलो लाभ शा माटे चूके छे. माटे आ असार शरीर उपरथी मोह उतारी ते वडे धर्मनुं साधन करी ले, ॥९४॥ जैह चिंतामणिरयणं, सुलहं न हु होइ तुच्छविहवाणं । गुणविहववज्जियाणं, जियाण तह धम्मरयपि ॥ ९५ ॥ * यथा चिन्तामणिरत्नं सुलभं न खलु भवति तुच्छविभवानाम् । गुणविभववर्जितानां जीवानां तथा धर्मरत्नमपि ॥ ९५ ॥ For Private And Personal Use Only

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