Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६८ ) आ जगत्मां धर्म बन्धुसमान छे-जेम आपत्ति समये भाइ सहायता करेछे, तेम आपत्तिमां आवी पडेला प्राणीने धर्म सहायता करेछे. वळी धर्म हितकर मित्र समान छे - जेम साचो मित्र सद्बुद्धि आपी सन्मार्गे दोरेछे, तेम धर्म प्राणीने सन्मार्गे दोरेछे. वळी धर्म सद्गुरु समान छे-जेम सद्गुरु उपदेश आपी प्राणीने दुर्गतिमांथी बचावे छे, तेम धर्म पण प्राणीने दुर्गतिमांधी बचावेछे. वळी धर्म मोक्षमार्गमा प्रवर्तेला प्राणीओने माटे श्रेष्ठ रथ समान छेजेम उत्तम रथ होय तो मार्गमां सुखेथी गमन थइ शके छे, तेम आ धर्मरूपी रथ मोक्षमार्गने विषे प्रवर्तेला प्राणीओने मोक्षमां सुखशान्तिथी पहोंचाडे छे, ॥१०२॥ उगइतहानल - पलित्तभवकाणणे महाभीमे । सेवसु रे जीव ! तुमं, जिणवयणं अमियकुंडसमं ॥ १०२ ॥ चार गतिमा रहेला अनन्त दुःखरूपी अग्नि वडे आ संसाररूपी महाभयंकर अरण्य सळगी उठ्युं छे. * चतुर्गत्यनन्तदुःखाऽनल - प्रदीप्तभवकानने महाभीमे । सेवख रे जीव ! त्वं, जिनवचनममृतकुण्डसमम् ॥ १०२ ॥ For Private And Personal Use Only

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