Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
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(५७)
डातो प्राणरहित थयो !. आवां दुःखो अनन्तीवार सहन करवा छतां ते कष्टोने आज तुं केम विसरी जाय छे १. ॥ ८३ ॥
बैट्ठट्ठकम्मपलया - निलपेरिओ भीसणम्मि भवरण्णे । हिंडन्तो नरएस वि, अनंतसो जीव ! पत्तो सि ॥८४॥
हे आत्मन् ! प्रलयकाळना पवन जेवा भयंकर एवा आठ कर्मे करी घोर एवा आ भवरूपी अरण्यमां भटकतां भटकतां तुं नरकगतिमां पण असह्य दुःखो अनन्ती वार पाम्यो छे - दुःख भोगववामां कांइ खामी राखी नथी, तो पण हजु तेवां ज दुःखो भोगववां पडे dai पापमय कार्यों करे छे ! अरे ! कांइक समज, शुद्धि ठेकाणे लाव, अने हवे पछी तेवां दुःखो भोगववां न पडे तेने माटे प्रयत्नशील था. ॥ ८४ ॥
दुष्टाऽष्टकर्मप्रलया - निलप्रेरितो भीषणे भवारण्ये । हिण्डमानो नरकेष्वपि, अनन्तशो जीव ! प्राप्तोऽसि ॥ ८४ ॥
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