Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५७) डातो प्राणरहित थयो !. आवां दुःखो अनन्तीवार सहन करवा छतां ते कष्टोने आज तुं केम विसरी जाय छे १. ॥ ८३ ॥ बैट्ठट्ठकम्मपलया - निलपेरिओ भीसणम्मि भवरण्णे । हिंडन्तो नरएस वि, अनंतसो जीव ! पत्तो सि ॥८४॥ हे आत्मन् ! प्रलयकाळना पवन जेवा भयंकर एवा आठ कर्मे करी घोर एवा आ भवरूपी अरण्यमां भटकतां भटकतां तुं नरकगतिमां पण असह्य दुःखो अनन्ती वार पाम्यो छे - दुःख भोगववामां कांइ खामी राखी नथी, तो पण हजु तेवां ज दुःखो भोगववां पडे dai पापमय कार्यों करे छे ! अरे ! कांइक समज, शुद्धि ठेकाणे लाव, अने हवे पछी तेवां दुःखो भोगववां न पडे तेने माटे प्रयत्नशील था. ॥ ८४ ॥ दुष्टाऽष्टकर्मप्रलया - निलप्रेरितो भीषणे भवारण्ये । हिण्डमानो नरकेष्वपि, अनन्तशो जीव ! प्राप्तोऽसि ॥ ८४ ॥ For Private And Personal Use Only

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