Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६ ) हे जीव ! तुं महाभाग्ययोगे जिनधर्मने पाम्यो, छतां प्रमाददोषथी तें आचर्यों नहीं जेथी खरेखर खेद थाय छे. अरे आत्मवैरी ! रत्न समान धर्म पामवा छतां फक्त प्रमाददोषथी नहीं आचरवाथी तने परलोकमां घणां दुःख सहन करवां पडशे अने ते वखते तुं खेद करीश. माटे हवेथी पण जाग्या त्यांधी सवार गणी, आत्मानो कट्टरशत्रु जे प्रमाद तेने त्यागी, अप्रमादपणे धर्म " कर. ।। ५३ ।। सोअँन्ति ते वराया, पच्छा समुवद्वियम्मि मरणम्मि । पावपमायवसेणं, न संचियो जेहि जिणधम्मो ॥५४॥ जेओए मद, विषय, कषाय, निद्रा, अने विकथारूप महादुष्ट प्रमादने आधीन थइ जिनधर्म आदर्यो नथी ते बापडा रांक जीवो पछीथी मरण आवी पहोंचतां पश्चात्ताप करेछे के " अरेरे! अमे कांइ धर्मसाधन करी शक्या नहीं, हवे परलोकमां शी गति थशे ?. धर्म कर्या विना परलोकमां क्यांथी सुखी थइशुं ', त्यां * शोचन्ते ते वराकाः, पश्चात् समुपस्थिते मरणे । पापप्रमादवशेन, न सञ्चितो यैर्जिनधर्मः ॥ ५४ ॥ For Private And Personal Use Only

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