Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) तारा जेवो कोण मूर्ख ?. माटे स्वाधीनपणामा ज तपस्यादि करी आत्माना सहज गुणो प्रगटाव, के जेथी भयंकर नारकीनी वेदनाओ भोगववानो वखत न आवे. ॥ ६६ ॥ काऊणमणेगाई, जम्म-मरणपरियहणसयाई । दुक्खेण माणुसत्तं, जइ लहइ जहिच्छियं जीवो ॥६७॥ तं तह दुल्लहलं, विज्जुल्लयाचंचलं च मणुयत्तं । धम्मम्मि जो विसीयइ, सो काउरिसो न सप्पुरिसो ६८ जीव अनेक सेंकडा जन्म अने मरणना परावर्तनना घणा दुःख भोगवीने महाकष्टे पोताने इष्ट एवं मनुष्यपणुं पामे छे ॥ ६७ ॥ आवा दस दृष्टान्ते दुर्लभ अने वीजळीना झबकारा जेवो चंचळ मनुष्यभव पामीने पण जे कोइ धर्मकृत्यमां प्रमाद करे ते कायर पुरुष समजवो, ते सत्पुरुषोनी पंक्तिमां गणावा लायक थतो नथी. माटे हे * कृत्वाऽनेकानि, जन्म-मरणपरिवर्तनशतानि । दुःखेन मानुषत्वं यदि लभते यथेच्छितं जीवः ॥ ६७ ॥ + तत् तथा दुर्लभलाभं, विद्युल्लताचञ्चलं च मनुजत्वम् । धर्मे यो विषीदति, स कापुरुषो न सत्पुरुषः ॥ ६८ ॥ For Private And Personal Use Only

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