Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
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(४७) जीव ! तुं महाकष्टे पूर्ण पुण्योदये मनुष्यभव पाम्यो छे, तो तेने सार्थक कर. ॥ ६८॥
माणुस्सजम्मे तडि लद्धियम्मि,
जिणिंदधम्मो न कओ य जेणं । तुट्टे गुणे जह धाणुकरणं,
हत्था मलेवा य अवस्स तेणं ॥ ६९॥ अनन्ता भवरूप समुद्रमां भटकतां भटकतां कांठारूप मनुष्यजन्म प्राप्त करवा छतां जेणे जिनेन्द्रप्ररूपित धर्म को नहीं तेने, जेम धनुष्यनी दोरी तूटतां धनुर्धारी पुरुषने हाथ घसवा पडेछे तेम अवश्य हाथ घसवा पडेछे-पश्चात्ताप करवो पडेछे. माटे हे आत्मन् ! तने धर्म करवाने मनुष्यभवादि सामग्रीओ मळी छे, छतां जो प्रमाद करी तेओनो उपयोग नहीं करे, अने निरर्थक दिवसो गुमावीश, तो मरणसमये अतिशय पश्चात्ताप थशे. ॥ ६९॥
* मानुष्यजन्मनि तटे लब्धे, जिनेन्द्रधर्मो न कृतश्च येन । त्रुटिते गुणे यथा धानुष्ककेण, हस्ती मलयितव्यौ च अवश्यं तेन ॥६९॥
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