Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५०) कळनुं टीपु थोडो ज समय रहे छे-जोतजोतामा नीचे पडी जाय छे, तेम मनुष्योनुं जीवित पण जलदी नाश पामे तेवं छे. माटे एक समय पण प्रमाद करीश नहींधर्मने विष निरन्तर उद्यम कर, ।। ७२ ॥
संबुज्झह किं न बुज्झह, संबोही खलु पेच दुल्लहा । नो इवणमन्ति राइओ, नो मुलहं पुणरवि जीवियं७३ - हे भव्य प्राणीओ! तमे बुझो-सम्यक्त्व रत्न मेळववाने उद्यम करो, आवो अवसर फरी फरीने मळवो मुश्केल छे. समग्र प्रकारनी धर्मसामग्री मळवा छतां हजु केम प्रतिबोध पामता नथी ?, कारण के जेमणे धर्मकृत्य कर्यु नहीं तेमने परलोकमां सम्यक्त्व मळवू दुर्लभ छे.. गयेला रात्रि-दिवसो पाछा आववाना नथी, अने धर्मसाधन करवाने योग्य जीवित पार्छ मळवू सुलभ नथी, माटे धर्म सामग्री पामी प्रमाद न करो, ॥७३॥
* संबुध्यध्वं किं न बुध्यध्वं, संबोधिः खलु प्रेत्य दुर्लभा।
नैवोपनमन्ति रात्रयो, नो सुलभं पुनरपि जीवितम् ॥ ३ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75