Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५१) डहरा बुड्डा य पासह, गन्भत्थावि चयन्ति माणवा । सेणे जह वयं हरे, एवमाउक्खयम्मि तुट्टइ ॥ ७४ ॥ हे प्राणीओ! तमे जुओ-केटलाएक मनुष्यो गर्भमां ज मरण पामे छे!, केटलाएक बाल्यावस्थामां ज मृत्युने शरण थायछे, केटलाएक युवावस्थामा वहाला स्त्री-पुत्रादिने मूकी मरी जायछे, ज्यारे केटलाएक वृद्धावस्थानां दुःख भोगवी भोगवी पग घसता मरणने आधीन थायछे. आवी रीते जेम बाजपक्षी तेतरने ओचिंतो झाली ले छे, तेम आयुष्यक्षय थतां यमदेव जीवितने हरेछे, माटे क्षण मात्र पण जीवितनो विश्वास नहीं राखी धर्मसाधन करवाने सावधान थाओ. ॥७४ ॥ तिहुयणजणं मरन्तं, दट्टण नयन्ति जे न अप्पाणं । विरमन्ति न पावाओ, धी धी! धिट्टत्तणं ताणं ॥७॥ __जेओ त्रणे भुवनना प्राणीओने मरता देखता छतां पोताना आत्माने धर्मने विष जोडता नथी, अने पाप * बाला वृद्धाश्च पश्यत, गर्भस्था अपि च्यवन्ते मानवाः । श्येनो यथा वर्तकं हरति, एवमायुःक्षये त्रुट्यति (जीवितम् ) ॥४॥ + त्रिभुवनजनं म्रियमाणं, दृष्ट्वा नयन्ति ये नात्मानम् (धर्मे)। विरमन्ति न पापाद्, धिर धिगू धृष्टत्वं तेषाम् ॥ ७५ ॥ For Private And Personal Use Only

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