Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
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(४९) नैवि अत्थि कोई तुह सरणि मुक्ख !, ___ इक्कल्लु सहसि तिरि-निरयदुक्ख ॥७१॥
रे मूर्ख आत्मन् ! आ लोकमां तने अतिशय वहाला एवा पिता पुत्र मित्र स्त्री तथा घरना माणसो विगेरे पोतानो ज स्वार्थ ताकता फरेछे, ते कोइ तारं शरण नथी. तेओने माटे कूड-कपट करी तारे एकलाने ज तिर्यच अने नरकगतिनां दुःखो सहन करवां पडशे; अने ते महाभयंकर दुःख वखते कोइ तारुं रक्षण करवाने आवशे नहीं. माटे हे मूढ ! हजु कांइक विचार, अने आश्रवभावमांथी निवृत्त थइ संवरभावमा परिणत था, के जेथी परलोक सुधरे. ॥ ७१॥ कुसग्गे जह ओसबिंदुए, थोवं चिट्ठह लंबमाणए । एवं मणुआण जीवियं, समयं गोयम !मा पमायए ७२ __ प्रभु श्रीमहावीर गौतम स्वामीने उपदेशे छ के हे गौतम ! जेम डाभना अग्रभाग उपर लटकी रहेढं झा
* नाऽप्यस्ति कोऽपि तव शरणे मूर्ख !, एकाकी सहिष्यसे तिर्यग्नरकदुःखानि ॥७१॥ + कुशाग्रे यथाऽवश्यायबिन्दुकः, स्तोकं तिष्ठति लम्बमानकः । एवं मनुजानां जीवितं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः॥ भ. वै. ४
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