Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१) नैवि इत्थ कोवि नियमो, __ सकम्मविणिविट्ठसरिसकयचिहो। अन्नुन्नरूव-वेसो, नडुब्व परिअत्तए जीवो ॥६०॥ (युग्मम्) आ जीव कोइ वखत राजा थयो, ज्यारे कोइ वखत भीखारी बनी उदरपूर्ति माटे घेर घेर भटक्यो.कोइवखत महाक्रूर चंडाल थयो, ज्यारे कोइ वखत वेदनो जाणकार महाधुरंधर विद्वान् बन्यो. कोइ वखत हजारो मनुष्योनो स्वामी थयो, ज्यारे कोइ वखत सेवक बनी पराधीन थयो. कोइ वखत जगतने वन्दनीय थयो, ज्यारे कोइ वखत महा नीच दुर्जन बनी जगतने धिक्कारवा योग्य बन्यो. कोइ वखत निर्धन महादरिद्री थयो, अने पोतानी आजीविकाने माटे पण विचार थइ पड्यो; ज्यारे कोइ वखत कुबेर भंडारी जेवो बेशूमारधननो स्वामी थयो. ॥ ५९ ॥ आवी रीते आ जीवने कोइ पण नियम ज नथी, कारण के आ संसाररूपी रंगभूमिमां पोताना कमने अनुसारे * नाप्यत्र कोऽपि नियमः, स्वकर्मविनिविष्टसदृशकृतचेष्टः । अन्योन्यरूप-वेधो, नट इव परिवर्तते जीवः ॥ ६ ॥ For Private And Personal Use Only

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