Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
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(४३) भीसणदुहं बहुविहं, अणंतखुत्तो समणुभूअं ॥ ६२ ॥ तिरियंगई अणुपत्तो, भीममहावेअणा अणेगविहा । जम्मण-मरणरहट्टे, अणंतखुत्तो परिन्भमिओ॥३३॥
हे जीव ! तें देवभवने विषे तथा मनुष्यभवने विषे परतंत्रताना पाशमां सपडाइ भयंकर घणा प्रकारदुःख अनन्ती वार अनुभव्युं ॥ ६२ ॥ वळी तुं तिर्यंच गतिमां उत्पन्न थयो त्यां अनेक प्रकारनी भयंकर महावेदनाओ भोगवी. आवी रीते चारे गतिमां जन्म अने मरण रूपी रेंटने विषे अनन्ती वार भटक्यो. आ जगत्मां एवं कोइ दुःख नथी के जे दुःख तें सहन कयुं न होय, आवी रीते अनन्ती वार घोर महाभयानक दुःख तें सहन काँ!. माटे हवे धर्मसाधन कर, के जेथी तेवां दुःख भोगववां न पडे. ॥ ६३ ॥
* भीषणदुःखं बहुविधम् , अनन्तकृलः समनुभूतम् ॥ १२ ॥ + तिर्यग्गतिमनुप्राप्तो, भीममहावेदना अनेकविधाः । जन्म-मरणाऽरघटे, अनन्तकृलः परित्रान्तः ॥ ६३ ॥
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