Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३८) नाओने सहन करेछे !, एवा आ संसारने धिक्कार हो!, धिक्कार हो !!!. ॥ ५५ ॥ जाई अणाहो जीवो, दुमस्स पुप्फ व कम्मवायहओ। धण-धन्ना-हरणाई, घर-सयण-कुडुंब मिल्लेवि ॥ ५६ ॥
जेम पवनना झपाटाथी वृक्षतुं पुष्प खरी पडेछे, तेम कर्मरूपी पवनने पराधीन थयेलो आ बीचारो अनाथ जीव पोते मेळवेलां धन धान्य घरेणां घर सगा-वहाला अने कुटुम्बने पडता मेली चाल्यो जायछे !. माटे हे आत्मन् ! तुं कर्मरूपी पवनने आधीन छे, तेनो झपाटो लागतां तारे बधुं छोडी चाल्युं जवू पडशे, ते वखते तारी साथे कांइ पण आवनार नथी. माटे परिणामे जे वस्तु तारी साथे आवनार नथी तेना उपरथी मोह त्यागी, परभवमां पण साथे आवी सुख करनार ज्ञान दर्शन अने चारित्रनुं आराधन कर. ॥ ५६ ॥
* यात्यनाथो जीवो, द्वमस्य पुष्पमिव कर्मवातहतः ।
धन-धान्या-ऽऽभरणानि, गृह-खजन-कुटुम्ब मुक्खाऽपि ॥ ५६ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75