Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
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(२४)
जीन्दगी वीजळीना जेवी चंचळ छे, अने जुवानी सायंकालना पंचवर्णा रंग जेवी क्षणमात्र रमणीय छे; माटे ते अस्थिर चंचळ अने क्षणभंगुर भावोनो सेवक न बनतां प्रभुसेवामां दत्तचित्त था. ॥ ३६ ॥
गैंयकण्णचंचलाओ, लच्छीओ तिअसचावसारिच्छं । विसयसुहं जीवाणं, बुज्झसु रे जीव ! मा मुज्झ ॥३७॥
हे आत्मन् ! लक्ष्मीओ हाथीना कान जेवी चंचळ छे, अने विषयसुख इन्द्रधनुष्य जेवुं क्षण भंगुर छे; माटे जरा जाण था - बोध पाम, मूर्ख बनी मोहमूढ न था. ॥ ३६ ॥ जैह संझाए सउणा - ण संगमो जह पहे अ पहिआणं । सयणाणं संजोगो, तहेव खणभंगुरो जीव ! ॥ ३८ ॥
हे जीव ! जेम अनेक प्रकारना पक्षीओ भिन्न भिन्न दिशाएथी आवीने एकठां थाय छे, अने सवार थतां पोतपोताने मनगमते स्थळे चाल्या जाय छे. तथा रस्तामां
* गजकर्णचञ्चला लक्ष्म्यस्त्रिदशचापसदृक्षम् ।
विषयसुखं जीवानां, बुध्यख रे जीव ! मा मुह्य ॥ ३७ ॥ + यथा सन्ध्यायां शकुनानां सङ्गमो यथा पथि च पथिकानाम् । वजनानां संयोगस्तथैव क्षणभङ्गुरो जीव ! ॥ ३८ ॥
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