Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३०)
जलदी जती रहेछे। अने स्त्री- पुत्रादि उपरनो प्रेम स्वप्न समान छे, एटले के क्षणमात्रमां नाश पामे छे. हे जीव ! आ प्रमाणे जो तुं खरा अन्तःकरणथी जाणतो होय तो जाण्या प्रमाणे वर्तन कर-जे कांइ धर्मकरणी करवी घटे ते कर, अने श्रीजिनेन्द्रना धर्मने साचो जाणी तेने विषे उद्यम कर ॥ ४४ ॥
संझराग- जलबुब्बुओवमे, जीविए य जलबिंदुचंचले । जुवणे य नइवेगसन्निभे, पावजीव ! किमियं न वुझसे ? ॥ ४५ ॥
सन्ध्या समयना रंग, जलना परपोटा, अने डाभ उपर रहेला जलना बिन्दु समान आ जीन्दगी चंचल छे- सन्ध्या समयना लाल पीळा लीला विगेरे रंगो घडी बेघडीमां नाश पामे छे, पाणीना परपोटा थोडा ज वखतमां हता नहोता थइ जाय छे, अने डाभना अग्र
* सन्ध्याराग जलबुद्बुदोपने, जीविते च जलबिन्दुचञ्चले । यौवने च नदीवेगसन्निभे, पापजीव । किमिदं न बुध्यसे ? ॥ ४५ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75