Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
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(३३) नर्यणोदयंपि तासिं, सागरसलिलाओ बहुयरं होइ । गलियं रुअमाणीणं, माऊणं अन्नमन्नाणं ॥४८॥
हे आत्मा! अन्य अन्य भवमां थयेली भिन्न भिन्न माताओ, के जेओ तारी विपत्ति दुःख अने मरणने लीधे रुदन करती हती ते माताओना नेत्रना आंसुर्नु परिमाण करवा बेसीए तो समुद्रना पाणीथी पण अतिशय अधिक थइ जाय !. अरे जीव ! तें अनन्ती माताओ करी, अने ते बधीने रोती ककळती मूकी आ भवमां आव्यो छे, माटे हवे परमार्थनो विचार कर, अने फरीथी माता न करवी पडे, अने जन्म जरा तथा मरणना फेरामां न भटकवू पड़े तेने माटे धर्मकरणीमा प्रयत्नशील था. ॥४८॥ जं नैरए नेरइया, दुहाइ पावन्ति घोरऽणताइ । तत्तो अणंतगुणियं, निगोअमज्झे दुहं होइ ॥ ४९ ॥
* नयनोदकमपि तासां, सागरसलिलाद् बहुतरं भवति ।
गलितं रुदतीनां, मातॄणाम् अन्यान्यासाम् ॥ ४८ ॥ + यद् नरके नैरयिका, दुःखानि प्राप्नुवन्ति घोराऽनन्तानि ।
ततोऽनन्तगुणितं, निगोदमध्ये दुःखं भवति ॥ ४९ ॥
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