Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२५) भिन्न भिन्न मुसाफरो एकठा थाय छे, अने थोडो वखत विश्रान्ति लइ पोतपोताने रस्ते पडे छे. तेम आ संसारमां सगां-संबन्धीओनो संबन्ध क्षणभङ्गुर छे, तेओ पोतपोताना कर्मने अनुसारे भिन्न भिन्न गतिमांथी आवी एकठा थया छ, अने कर्मने अनुसारे सुख-दुःख भोगवी आयुष्य पूर्ण थतां पोतपोताने योग्य गतिमा चाल्या जशे. तो पछी शा माटे तेओमां ममत्व राखी धर्मनो सत्य मार्ग भूली संसारमा बावरो थइ भटके छे?.॥३८॥
निसाविरामे परिभावयामि, गेहे पलित्ते किमहं सुयामि ।
डझन्तमप्पाणमुवक्खयामि, जं धम्मरहिओ दिअहा गमामि ॥ ३९ ॥ हे जीव ! तारे पाछली रात्र जागृत थइ निर्मळ चित्ते विचारवं जोइए के-"आ बधा अमूल्य दिवसो धर्म विना फोगट केम गुमायु ?, अने आ शरीररूपी घर वृद्धावस्था, अनेक प्रकारना रोगो, अने व्याधिरूपी
* निशाविरामे परिभावयामि, गेहे प्रदीप्ते किमहं खपिमि। . दहन्तमात्मानमुपेक्षे, यद् धर्मरहितो दिवसानू गमयामि ॥ ३९ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75