Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) खीया छे, भूख्या छे, वस्त्र रहित छे' इत्यादि रात्रिदिवस चिन्तवन कर्यु, तेओने पडती अगवडो टाळवा इलाजो लीधा. पण ते तारा आत्मानी थोडी पण चिन्ता करी नहीं के में मारा आत्मानुं शुंसार्थक कर्यु ?. थोडी पण आत्मानी चिन्ता करी होत तो सुखी थात, केवल रात्रि-दिवस परभावमां ज मग्न रह्यो. तुं मूढ बन्यो छे!, तने केटलो उपदेश आपीए ?-वधारे शुं कहीए ?. खणभंगुरं सरीरं, जीवो अन्नो अ सासयसरुवो। कम्मवसा संबंधो, निब्बंधो इत्थ को तुज्झ ? ॥ ३०॥ हे जीव ! आ शरीर क्षणभंगुर छे-क्षण विनाशी छे-अशाश्वतुं छे, अने आत्मा तेथी जुदो शाश्वत स्वरूप छे-अविनाशी छे, कर्मना वशथी तारो तेनी साथे संबन्ध थयो छे, तो पछी ताराथी विरुद्ध धर्मवाळा एवा आ शरीरमां तारी शी मूच्छो छ ?, शरीर उपरथी ममत्वभाव त्यागी आत्मस्वरूपमा रमण कर. ॥३०॥ कह आयं कह चलियं,तुमंपिकह आगओ कहंगमिही। * क्षणभङ्गुरं शरीरं, जीवोऽन्यश्च शाश्वतस्वरूपः । कर्मवशात् सम्बन्धो, निर्बन्धोऽत्र कस्तव ? ॥ ३० ॥ + कुत आगतं कुत्र चलितं, त्वमपि कुत आगतः कुत्र गमिष्यसि । For Private And Personal Use Only

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