Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८ ) राखी धर्ममां आसक्त थाय तो संसारना बन्धन - छेद नादि दुःखोथी छूटे ॥ २६ ॥ " अन्नो न कुणइ अहिअं, हिअंपि अप्पा करेइ न हु अन्नो । अप्पकयं सुह- दुक्खं, भुंजसि ता कीस दीणमुहो ? २७ हे जीव ! तुं एम धारेछे के अमुक माणसे मारुं बगाड्युं, अने फलाणाये सुधार्युः एम धारी राग-द्वेष करे छे. पण आ जगत्मां तारुं कोइ बगाडनार या सुधारनार नथी, तुं पोते ज तारुं हित या अहित करेछे, अने तुं पोते ज सारां नरसां कर्म करी सुख-दुःखने भोगवे छे; बीजो कोइ हिताहित करतो नथी, तो पछी शा माटे दयामणुं मुख करे छे ?, अने बीजाओना दोष देखे छे ? ॥ २७ ॥ बहुआरंभविढत्तं, वित्तं विलसन्ति जीव ! सयणगणा । तज्जणियपावकम्मं, अणुहवसि पुणो तुमं चेव ॥ २८ ॥ * अन्यो न करोत्यहितं हितमप्यात्मा करोति नैवाऽन्यः । आत्मकृतं सुख-दुःखं, भु ततः कस्माद् दीनमुखः १ ॥ २७ ॥ + बहारम्भाऽर्जितं, वित्तमनुभवन्ति जीव ! खजनगणाः । तज्जनितपापकर्म, अनुभवसि पुनस्त्वमेव ॥ २८ ॥ " For Private And Personal Use Only

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