Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (.१६) चौदराजलोकमां एवी कोइ जाति नथी, एवी कोइ योनि नथी, एवं कोई स्थान नथी, अने एवं कोइ कुल नथी के ज्यां सर्व जीवो अनन्तीवार जन्म्या नथी; अने अनन्तीवार मृत्यु पाम्या नथी-सर्व जीवो सर्व स्थानके अनंतीवार जन्म्या छे अने मृत्यु पाम्या छे. ॥ २३ ॥ तं किं पि नत्थि ठाणं, लोए वालग्गकोडिमित्तं पि । जत्थ न जीवा बहुसो, सुह-दुक्खपरंपरं पत्ता ॥ २४॥ __ लोकने विषे वालना अग्रभागना असंख्यातमा भाग जेटलुं पण एवं कोइ स्थान नथी के ज्यां जीवो घणी वार सुख दुःखनी परम्पराने न पाम्या होय. अर्थात् जीवो सर्व स्थानमा सुख दुःखनी परम्परा पाम्या, पण कर्मक्षयनी परम्परा पाम्या नहीं! ॥ २४ ॥ सवाओ रिद्धीओ, पत्ता सवे वि सयणसंबंधा। संसारे ता विरमसु तत्तो जइ मुणसि अप्पाणं ॥२५॥ हे जीव ! संसारने विषे अनादिकालथी भ्रमण क * तत् किमपि नास्ति स्थानं लोके वालाग्रकोटिमात्रमपि । यत्र न जीवा बहुशः सुख-दुःखपरम्परां प्राप्ताः ॥ २४ ॥ + सर्वा ऋद्धयः प्राप्ताः सर्वेऽपि खजनसम्बन्धाः । संसारे तस्माद् विरम ततो यदि जानास्यात्मानम् ॥२५॥ For Private And Personal Use Only

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