Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) दुःख देखे छे छता तेमांनुं कोण वेदना दूर करवाने समर्थ थाय छे ?, अर्थात् कोइ कांइ पण वेदना निवारवाने शक्तिमान् थतुं नथी, पण छेवटे अंत समये धर्मनुं शरण बतावे छे. माटे हे प्राणी ! परिणामे धर्मनु शरण तो करवू ज पडे छे, तो पछी प्रथमथी ज धर्मनुं शरण लेवाने शा माटे विलंब करे छे ?. ॥ २० ॥ माँ जाणसि जीव ! तुमं, पुत्त-कलत्ताइ मज्झ सुहहेऊ। निउणं बंधणमेयं, संसारे संसरंताणं ॥ २१॥ हे जीव ! तुं आ संसारने विषे एकान्ते दुःखना हेतु जे पुत्र स्त्री मित्रो विगेरेने सुखना हेतु जाण नहीं, कारण केसंसारमा भ्रमण करता जीवोने ए पुत्र स्त्री मित्रो विगेरे सगां संबंधीओ आकरा संसारबन्धन- कारण थाय छे, पण संसारमांथी छोडावता नथी. माटे ते संसारबन्धन करावनारा सगां संबंधीओमां ममत्व भाव नहीं राखतां कर्मबन्धनथी मुक्त करनार धर्ममां दृढबुद्धि कर ॥२१॥ जणणी जायइ जाया, जाया माया पिआ य पुत्तो अ । * मा जानीहि जीव! त्वं पुत्र-कलत्रादि मम सुखहेतुः । निपुणं बन्धनमेतत् संसारे संसरताम् ॥ २१ ॥ + जननी जायते जाया, जाया माता पिता च पुत्रश्च । For Private And Personal Use Only

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