Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) आ जीव निबिड कर्मरूप पाशथी बंधायेलो एवो संसाररूप नगरना चारगतिरूप चौटामां अनेक प्रकारनी विडम्बनाने पामे छे, अहीं तेनुं कोण शरणछे ॥१६॥ घोरम्मि गन्भवासे, कल-मल-जंबालअसुइबीभच्छे । वसिओ अणंतखुत्तो, जीवो कम्माणुभावेण ॥ १७ ॥ ___ आ जीव कर्मना प्रभावथी वीर्य अने मळरूप कादवने लीधे अपवित्रताथी भरपूर अने कंपारी छूटे एवा गंदा भयानक गर्भवासमां अनन्ती वखत वस्यो!. आवा दुःसह दुःखने पण भूली जइ फरीथी गर्भवासमां आवी दुःख भोगववां पडे एवां कृत्यो करे छे!, परन्तु पुनः गर्भवासमा आवदुं न पडे एवो उद्यम करतो नथी!। चुलसीई किर लोए, जोणीणं पमुहसयसहस्साई । इकिकम्मि अ जीवो, अणंतखुत्तो समुप्पन्नो ॥१८॥ __ लोकने विषे जीवने उत्पन्न थवानां स्थानक चोराशी लाख योनि छे. ते एक एक योनिमां आ जीवे अनन्ती वार अवतार लीधो!, तो पण हे प्राणी ! ते उत्पत्ति __ * घोरे गर्भवासे कल-मलजम्बालाऽशुचिबीभत्से । उषितोऽनन्तकृलो जीवः कर्मानुभावेन ॥ १७ ॥ + चतुरशीतिः किल लोके योनीनां प्रमुखशतसहस्राणि । एकैकस्यां च जीवोऽनन्तकृतः समुत्पन्नः ॥ १८ ॥ For Private And Personal Use Only

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