Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) अॅडकम्मपासमुक्को, आया सिवमंदिरे ठाइ ॥ १३ ॥ आ जीव आठ कर्मरूप पाशथी बंधायेलो एवो संसाररूप बन्दीखानामां ठाम ठाम भटके छे, अने आठ कर्मरूप पाशथी मूकायेलो एवो मोक्षमन्दिरमां जइने रहे छे । माटे हे जीव ! तुं आठ कर्मरूप पाशने तोडीश त्यारे ज मोक्षमन्दिरमां जइश, अने अविनाशी सुख पामीश. विवो सज्जणसंगो, विसयसुहाई विलासललिआई । नलिनीदलग्गघोलिर - जललवपरिचंचलं सर्व्वं ॥ १४ ॥ आ जीवे मानी लीला जे सुखकारी पदार्थों, जेवा केलक्ष्मी, सग संबन्धीओनो संग, तथा स्त्री विगेरेना मनोहर विलासे करी सुंदर एवा पांचे इन्द्रियोनां विषयसुख, ए सर्व अतिशय चंचल छे. जेम कमळपत्रना अग्र भागमा रहेलुं जलबिन्दु अतिचपल छे तेम ए सर्व अतिशय चपल छे-धोडा कालमां ज हतुं नहोतुं थइ जायछे ! माटे हे जीव ! आवा अस्थिर पदार्थोमां शा माटे आसक्त थायछे ? ॥ १४ ॥ * अष्टकर्मपाशमुक्त आत्मा शिवमन्दिरे तिष्ठति ॥ १३ ॥ + विभवः सज्जनसङ्गो विषयसुखानि विलासललितानि । नलिनीदला घूर्णयितृ - जललव परिचञ्चलं सर्वम् ॥ १४ ॥ For Private And Personal Use Only

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