Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(११) तं कत्थ बलं तं कत्थ, जुवणं अंगचंगिमा कत्थ । सबमणिचं पिछह, दि8 नर्से कयंतेण ॥ १५॥ कायानुं ते बळ क्यां गयुं ?, ते जुवानी क्या चाली गइ ?, शरीरनुं ते सौन्दर्य क्यां गयुं ?, ते सर्व रूप-रंग क्यां चाल्या गया?, अरे वृद्धावस्था आवी!.हे प्राणीओ! आ सर्व अनित्य छे ते साक्षात् जुओ-तपासो. जे सर्व नानी वयमा देख्युं हतुं, ते सर्व यमराजाए नष्ट भ्रष्ट करी दीg-थोडा ज बखतमा हतुं नहोतुं थइ गयु. आ शरीरने गमे तेटली साचवणीथी राखशो तो पण तेनुं बळ सौन्दर्य अने जुवानी टकवानी नथी-विनश्वर छे, मा जेनी करेली सेवा कदापि निष्फल थती नथी एवा धर्मर्नु सेवन करो ॥१५॥ घणकम्मपासबद्धो, भवनयरचउप्पहेसु विविहाओ। पावइ विडंबणाओ, जीवो को इत्थ सरणं से १ ॥१६॥
* तत् कुत्र बलं ? तत् कुत्र यौवनम् ? अङ्गचगिमा कुत्र ? । सर्वमनित्यं पदयत दृष्टं नष्टं कृतान्तेन ॥ १५॥ + घनकर्मपाशबद्धो भवनगरचतुष्पथेषु विविधाः । प्राप्नोति विडम्बना जीवः कोऽत्र शरणं तस्य ? ॥ १६ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75