Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९) साथे आवतुं नथी. माटे तेओनी खोटी मूर्छा त्यागी तारी संगाथे आवनारा धर्मने आदर के जेथी तारो जल्दी निस्तार थाय ॥ ११ ॥ विहंडन्ति सुआ विहडन्ति, बंधवा विहडन्ति सुसंचिआ अत्था । इको कह वि न विडहइ, धम्मो रे जीव ! जिणभणिओ ॥ १२॥ हे जीव ! दीकराओनो वियोग थाय छे, बान्धवो विखूटा पडे छे, अने घणा परिश्रमथी मेळवेली सम्पत्ति पण वियुक्त थाय छे. एटले के तेमने मूकीने तारे जर्बु पडशे, अथवा तने मूकीने तेओ चाल्या जशे, पण एक जिनराजे कहेला धर्मनो कोइ काळे पण वियोग थवानो नथी, अर्थात् आ जीवने साचं सगपण तो धर्मर्नु ज छे, बीजं सर्व आळ पंपाळ छे. माटे जिनधर्म उपर साची श्रद्धा राखी तेनुं ज सेवन कर. ॥ १२॥ अडकम्मपासबद्धो, जीवो संसारचारए ठाइ । * विघटन्ते सुता विघटन्ते बान्धवा विघटन्ते सुसञ्चिता अर्थाः । एकः कथमपि न विघटते धर्मो रे जीव ! जिनभणितः ॥ १२ ॥ + अष्टकर्मपाशबद्धो जीवः संसारचारके तिष्ठति । For Private And Personal Use Only

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