Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (c) कालम्मि अणाइए, जीवाणं विविहकम्मवसगाणं । तं नत्थ संविहाणं, संसारे जं न संभवइ ॥ १० ॥ अनादिकालने विषे क्रोध मान माया अने लोभने योगे विविध प्रकारना कर्मने वश थयेला जीवोने आ संसारमा एवो कोई संबन्ध नथी के जे न संभवे, अर्थात् समग्र संबन्धे आ जीवो संसारमां भटक्या छे, पण जो जिनवरनो धर्म स्वीकारी रूडी रीते पाळे तो संसाररूप चक्रमां न भमे ॥ १० ॥ बंध सुहिणो सधे, पिअ माया पुत्त भारिया । पेअवणाओ निअन्तन्ति, दाऊणं सलिलंजलिं ॥ ११ ॥ हे जीव ! बांधव मित्रो मा बाप स्त्री अने पुत्र ए कोइ तारांसगां नथी, पण देहनां सगां छे. कारण केमृत्यु थया पछी देहने बाळी पाणीनी अंजली आपी श्मशानथी पोतपोताना स्वार्थने संभारता पोतपोताने घेर पाछा जाय छे, पण तेमानुं कोइ वहालुं सगुं तारी * कालेऽनादिके जीवानां विविधकर्मवशगानाम् । तन्नास्ति संविधानं संसारे यन्न संभवति ॥ १० ॥ + बान्धवाः सुहृदः सर्वे माता- पितरौ पुत्र भार्याः । प्रेतवनाद निवर्तन्ते दत्त्वा सलिलाऽञ्जलिम् ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75