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(.१६) चौदराजलोकमां एवी कोइ जाति नथी, एवी कोइ योनि नथी, एवं कोई स्थान नथी, अने एवं कोइ कुल नथी के ज्यां सर्व जीवो अनन्तीवार जन्म्या नथी; अने अनन्तीवार मृत्यु पाम्या नथी-सर्व जीवो सर्व स्थानके अनंतीवार जन्म्या छे अने मृत्यु पाम्या छे. ॥ २३ ॥ तं किं पि नत्थि ठाणं, लोए वालग्गकोडिमित्तं पि । जत्थ न जीवा बहुसो, सुह-दुक्खपरंपरं पत्ता ॥ २४॥ __ लोकने विषे वालना अग्रभागना असंख्यातमा भाग जेटलुं पण एवं कोइ स्थान नथी के ज्यां जीवो घणी वार सुख दुःखनी परम्पराने न पाम्या होय. अर्थात् जीवो सर्व स्थानमा सुख दुःखनी परम्परा पाम्या, पण कर्मक्षयनी परम्परा पाम्या नहीं! ॥ २४ ॥ सवाओ रिद्धीओ, पत्ता सवे वि सयणसंबंधा। संसारे ता विरमसु तत्तो जइ मुणसि अप्पाणं ॥२५॥
हे जीव ! संसारने विषे अनादिकालथी भ्रमण क
* तत् किमपि नास्ति स्थानं लोके वालाग्रकोटिमात्रमपि । यत्र न जीवा बहुशः सुख-दुःखपरम्परां प्राप्ताः ॥ २४ ॥ + सर्वा ऋद्धयः प्राप्ताः सर्वेऽपि खजनसम्बन्धाः । संसारे तस्माद् विरम ततो यदि जानास्यात्मानम् ॥२५॥
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