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( १७ )
तां तें देव अने मनुष्यादिनी सर्व समृद्धि - संपदा पामी, अने सर्वनी साथे मा बाप बहेन बन्धु स्त्री विगेरे समग्र प्रकारना सगपण अनन्तीवार पाम्यो, पण तेमां तारी हजु सुधी सिद्धि थइ नहीं. माटे परिणामे दुःखकर ते समृद्धि अने सगपणोमां मोह माया राख नहीं. अने आत्मस्वरूपने जाणवा इच्छतो होय तो संसारथी विराम पाम - संसारथी विरक्त था, के जेथी भवभ्रमणा टळी अक्षयसुख मळे. ॥ २५ ॥
एैगो बंधइ कम्मं, एगो वह बंध मरण- वसणाई | विसहइ भवम्मि भमडइ, एगु चिअ कम्मवेलविओ २६
आ जीव एकलो ज कर्मबंध करे छे, अने वध बन्ध मरण अने आपत्ति एकलाने ज सहन करवी पडे छे, पण जे स्त्री- पुत्रादिने माटे तें अनेक प्रकारना पापारंभ कर्या ते कोइ तारी वेदनानो भाग लेवा आवशे नहीं. art कर्मी उगायेलो एवो आ जीव एकलो ज संसारमां भटक्या करे छे, पण जो वीतरागना वचन उपर श्रद्धा
* एकोनात कर्म, एको वध-बन्ध-मरण - व्यसनानि । विषहते भवे भ्राम्यति, एक एव कर्मवञ्चितः ॥ २६ ॥
भ.वै. २
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