Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे भव्यजीवो! काळरूपी सर्पे खावा मांडेली देहन जेणे करी रक्षण करीए एवी कोइ बहोतेर कळामांनी कळा देखाती नथी, एवं कोइ ओसड दृष्टिगोचर थतुं नथी, तेम एवं कोइ विज्ञान हस्ती धरावतुं नथी-बीजां सर्वजातिनां विष उतरे पण डसेला काळरूपी सर्पर्नु विष उतरे नहीं. महा समर्थ पुरुषोनां वज्रजेवां शरीरने पण काळरूप सर्प गळी गयो छे, तो पछी आपणा जेवानी काची कायानो शो भरोसो, माटे विलम्ब रहित धर्मकृत्य करी ल्यो ॥७॥ दीहरफणिंदनाले, महियरकेसर दिसामहदलिल्ले। ओ! पीयइ कालभमरो, जणमयरंदं पुहविपउमे ॥८॥ घणी खेदनी वात छे के-जेनुं शेषनागरूप मोटुं नाळq छे, जेना पर्वतो रूपी केसरा छे, जेना दस दिशारूप विशाळ पर्णो छे एवा आ पृथ्वीरूप कमळमां, काळरूप भ्रमर, मनुष्यरूप-समग्रलोकरूप रसने पीवेछे !. भमरो कमळमांथी एवी रीते रस ले छे के जेथी कमळने जरा पण इजा थाय नहीं, वळी ते मधुरस्वरे बो * दीर्घफणीन्द्रनाले महीधरकेसरे दिशामहादले । ओ! (पश्चात्तापः) पिबति कालभ्रमरो जनमकरन्दं पृथ्वीप ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75