Book Title: Samykatva Saptati
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
स०टी०
सम्य० दवाएसरियापसायवसओ गयकसाओ॥ ५ ॥ सवेसुं सत्तेसुं, करुणाकरणुजयावि सयकालं । दुद्धरपमायसिंधुरमुसु
मूरणहरिवरसरिच्छा॥६॥नासियमयणवियारावि सिद्धिरमणीइ विहियपरियारा। परिहरियसयलदविणावि गहियचा॥१८७||
रित्तवररयणा ॥ ७॥ निरुवमउवसमरसभरपूरियहियया सया दयानिरया। रागहोसविमुक्का, हवंति गुरुणो भवविरत्ता ॥८॥ इचाइ बहुपयारं सयलजणाणं पुरो नराहिवई। वण्णइ गुरूण गुरुयरगुणनिवहं भत्तिराएणं ॥९॥ कलावयम् । माणुसत्तं वरो धम्मो, गुरू चारित्तबंधुरो। जयम्मि दुलहा एसा, सामग्गी सबपाणिणं ॥ १० ॥ एरिसगुणगणकलिए गुरुणो सेवंति जे जए धन्ना । धन्नयरा उण तेसिं पियंति जे वयणअमियाई ॥११॥ एरिसवयणरसेणं बहूण चित्ताउ पावकम्ममलं । पक्खालिय जिणधम्मे, संठावइ भूवई लोए ॥१२॥ एगो पुण सिद्विसुओ, विजओ नामेण भणइ नरनाहं । तं वण्णसि मुणिणो तं सचं पिहु पलालसमं ॥१३॥ समिरपहिलिरधयवडतरलं कह धारयंति ते चित्तं । नियविसयपसत्ताई करणाइ कहं निरुंधन्ति ? ॥ १४ ॥ उचियं दुहियजणाणं, हणणं ते विणासिया संता। नियकम्मं वेइत्ता, सुगई पावंति महिनाह! ॥ १५॥ अपमाएणं लब्भइ मुक्खसुहं एरिसंपि तवयणं । जरहरतक्खयचूडामणिउवएसस्स सारिच्छं॥ १६ ॥ एवं मुद्धजणं पिहु वायालो भजइ सुमग्गाओ। तप्पडिबोहनिमित्तं राया जक्खाभिहं पुरिसं ॥१७॥ आइसई विजएणं मित्तिं काउं ममाहरणमेयं । तस्स य रयणकरंडे खिवेहि वीसासिउं कहति ॥१८॥रायाएसं तेणवि तहेव काऊण सामिणो भणियं । रायावि पडहघोसणपुरस्सरं इय कहावेइ
ALORECASACRABAR
M॥१८७॥
Hann Education Interational
For Privale & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506