Book Title: Samykatva Saptati
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 456
________________ स.टी. सम्य० निच्छयकए पुरीए कंचीइ गयं नहपहंमि ॥ २१॥ तत्थत्थि वेरिलच्छिवेणीआगरिसणिकदुल्ललिओ । दुल्ललिओ २१५॥ नरनाहो तस्स सहोवरि गयं मिहुणं ॥ २२॥ खेयरसंसग्गेणं विगयभयं तं नहंमि ठाऊणं । कीरो वण्णइ पढमं नरनाहं निययबुद्धीए ॥२३॥ भूमीसरो स नंदउ जस्स सरस्सइरसं निएऊणं । पायालतलं गुविलं निलीय चितुइऽही अमियं ॥ २४ ॥ तत्तो कीरी दाहिणचरणं उप्पाडिउं महीनाहं । नमिऊणं भत्तीए सुललियवयणेहिं वण्णेइ ॥२५॥ अवइन्ना बाएसरि मुहकमले जस्स रायहंसिव । सो जयउ सच्चसंघो राया नयमग्गनहचंदो ॥ २६ ॥ कोऊहलेण कलिओ राया वाहरइ कीरमिहुणं तं । आगच्छसु मह पासे साहसु कजं तहा निययं ॥२७॥ तेहिवि निए विवाए कहिए राया निएइ मंतिमुहं । सोविहु साहइ एसिं मज्झण्हे उत्तरं देमो ॥२८॥ अच्छरियभरियमणो राया तं मिहुणयं गिहे नेउं । कुरजुएहिं दाडिमकुलेहिं भोयइ जहिच्छाए ॥ २९ ॥ अत्थाणे मज्झण्हे उवविढे नरवरंमि मंतिजणो। हजपइ कीरविवाओ एस अउचो असुयपुबो ॥ ३०॥ सुइरं वियारयंता अवि नो पारं गया इमस्सऽम्हे । ता गंतूणं अन्नत्थ नाणिणं कंपि पुच्छंतु ॥३१॥ तो रोसारुणनयणो राया मइगवपचयारूढो। तजेइ मंतिवग्गं अहो अहो तुम्ह मइविहवो ॥ ३२ ॥ दिववसा जइ एसो कीरविवाओ अणिच्छिओ इत्तो। अन्नत्थ पुरे गच्छइ ता लज्जा आजुगं४॥ तं मे ॥ ३३ ॥ अहवा कित्तियमित्तो एस विवाओ सुबुद्धिमंताणं? । तम्हा सुणेह सवणे पउणे काऊण मह वयणं ॥४४ ॥ बीयं खु बीयवइणो हवेइ लोएवि सुप्पसिद्धमिणं । खित्ताहिवस्स व जहा खित्तं इत्थंपि तं मुणह ॥३५॥ । ॥२१॥ Jain Educatie en tional For Private & Personal Use Only A w.jainelibrary.org

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