Book Title: Samykatva Saptati
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 455
________________ सुयमिहुणं । सयलकलानिलयंपिहु मोयवियं मलयगिरिसिहरे ॥७॥ खेयरपरियरणाए विनायसमत्थसत्थपरमत्थं । तम्मिहुणं सच्छंदं विलसइ विविहहिं भोगेहिं ॥८॥ ताणं कमेण जाओ तप्पडिरूवो तणुब्भवो कीरो । सो| तेहिं सिक्खविओ कलाकलावं समग्गंपि ॥९॥ अनुन्ननेहनिरयस्स तस्स मिहुणस्स कहवि दिववसा । जाओ अईव कलहो धिरत्थु चित्ताणि कामीणं ॥१०॥ तरसा सुएण तत्तो अवरा तारुण्णपुण्णसवंगी । संगहिया वरकीरी निब्भरपिम्मेण परिकलिया ॥११॥कीरी तओ वराई तं मन्नावेइ चाडवयणहिं। तहवि न मन्नइ कीरो पावो इयरीइ गहियमणो ॥ १२॥ दटुं सा नियदइयं कछुव पणट्ठपिम्मरसभारं । जंपइ अप्पसु खिण्णं मह पुत्तं गुत्तसुपवित्तं ॥१३॥ भणियं च-इत्थीण ताव पढमं पिओ पिओ होइ सवभंगीहि । तविरहियाण पुत्तो नियमणआसासओ होइ ॥ १४ ॥ अहयं पुण निविण्णा दुरंतसंसारदुक्खवासाओ। गंतुं कमिवि तित्थे अप्पाणं साहइस्सामि ॥ १५ ॥ एसो पुत्तो मह पास संठिओ धम्मसलिलसेएण । मोहं हरेइ संलेहणाइ विहियाइ जह तित्थे ॥ १६ ॥ धम्मज्झाणं तह पवहणं च निजामएण परिचत्तं । अवसाणसमयजलणिहिपरपारं नेव पावे ॥ १७॥ कीरोऽवि हु तवयणं सुणित्तु जरजजरुव कंपंतो । पभणइ मग्गंती मह तणयं सयखंडयं न गया ॥ १८ ॥ पुत्तो पिउणो आभवमेव वरखितखित्तबीयं व । सावि भणइ माऊए न तं विणा जं भवे तणओ ॥१९॥ यतः-"उपाध्याया दशाचार्य, आचार्याणां शतं पिता । सहस्रं तु पितुर्माता, गौरवणातिरिच्यते ॥२०॥" एवं बहुप्पयारं विवयंतं पुत्तसंजुयं मिहुणं । Jain Educatar o nal For Privale & Personal Use Only A jainelibrary.org

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