Book Title: Samykatva Saptati
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 470
________________ सम्य० ॥२२२॥ Jain Education ता कूडनिवो करुणसरं रुयइ तप्पुरओ || २१८ || दइए चएसु तमेयं किरियं छुट्टेमि जेण कट्ठाओ। नियजीवियदाणेणवि कंतं रक्खति कुलजाया ॥ २१९ ॥ तो सा चिंतइ जायइ भवे भवे पिययमो न उण धम्मो । तम्हा जं वा तं वा होउ न खंडेमि नियनियमं ॥ २२० ॥ एवं झायंतीए खणेण खीणेसु घाइकम्मेसु । तीए संदेहहरं केवलनाणं समुप्पन्नं ॥ २२१ ॥ आसन्नट्ठियदेवीहि झत्ति तीए समप्पिया मुद्दा । तत्तो तीइ वि लोओ चउमुट्ठीहिं सिरंमि कओ ॥ २२२ ॥ उवविसिय देवविहिए सुवण्णकमलंमि साहए धम्मं । तत्तो पयडीहोउं खामइ सा वंतरीवि तयं ॥ २२३ ॥ पडिबोहिय दुल्ललिएण संजयं सा य नायरं लोयं । निवाणं संपत्ता सत्तुंजयगिरिवरसिरंसि ॥ २२४ ॥ नायं नाउं भुवणमहियं चंदलेहासईए, संमत्तंमी वयचय महारुक्खमूलायमाणे । नो कायवो नरगजणगो जीवितेवि भंगो, जेणं तुब्भे लहह सयलं सासयं मुख सुक्खं ॥ २२५ ॥ भावनापदकविषये चन्द्रलेखाकथा । इतिश्रीरुद्रपल्लीयगच्छगगनमण्डनदिनकर श्री गुणशेखरसूरिपट्टावतंस श्रीसङ्घतिलक सूरिविरचितायां सम्यक्त्वसप्ततिकावृत्तौ तत्त्वकौमुदीनाम्यां सम्यक्त्वषड्भावनास्खरूपनिरूपणो नामैकादशोऽधिकारः समाप्तः ॥ एकादशं सम्यक्त्वषड्भावनास्खरूपाधिकारमुक्त्वा द्वादशं सम्यक्त्व पडूलक्षणख रूपाधिकारमाहअस्थि जिओ तह निच्चो कत्ता भुत्ताय पुण्णपावाणं । अस्थि धुवं निव्वाणं तस्सोवाओ य छडाणा ॥ ५९ ॥ व्याख्या- 'अस्ति' विद्यते 'जीवः' आत्मेति निश्चयात्प्रथमलक्षणम् । तथा स जीवो 'नित्यः' शाश्वतो द्रव्यापेक्षयेति For Private & Personal Use Only स०टी० ॥२२२॥ jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506