Book Title: Samykatva Saptati
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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सम्यक
स०टी०
॥२२६॥
ROCRACAR
जयसिरिं आयडिऊणं खणा। नूणं सो पुरिसुत्तमो विहसिओ देविन्दमन्थयलाणंतेहिं परिमन्थिए जलणिही साविक्खलद्धिंदिरो ॥१॥ सो उण कुलक्कमागयनत्थियवायवायाऊरियपुट्टो देवगुरुदुट्टो जीवस्स बन्धमुक्खपुण्णपावपरभवग मणाइयं न मन्नइ, चत्तारि चेव भूए सवत्थ वत्थुकारणभूए परमरहस्सं वाहरेइ । तस्स य पुरिसुत्तमस्स व सच्छी नियलडहलायण्णपराजियहरिसुंदरी सुरसुन्दरी नाम महादेवी । तस्स य मइमाहप्पदप्पपराजियामरमंती सुमइनामा मंती, जो य-निरुवममुणिजणसेवणधुरीणभावेण मुणियसुयसारो। जिणपूयबद्धलक्खो वयपालणसावहाणमणो ॥१॥ इओ य भूरमणीतिलयसहोयरे सिरिचण्डउरे नयरे वेरिचकमुसुमूरणचंडसेणो सेणो नाम सामन्तओ आसि, तस्स मंततंतजंतसुदित्तमई जोई परममित्तो हुत्था, सो य अन्नया नरसुन्दररायविसमतमसेवानिवेयपरेण चण्डसेणसामन्तेण सवाऽलंकारभासुरीकाऊण सप्पणयं वाहरिओ-बन्धव! मं दुक्खसायरनिवडियं नरसुन्दररायविद्धंसणहत्थावलम्बणदाणण समुद्धरेसु, तेणावि तम्मोहमोहियमइणा तहेव पडिवन्नं, तओ जोगीवि कञ्चीपुरीए गन्तूण एगमि मढे ठाऊण बहुप्पयारकोउगादसणरञ्जियजणो परमं पसिद्धिमुवगओ, रण्णावि तप्पभावाइसयं लोयाओ सुणिय णियसगासमाकारिय सायरं दिन्नासणो रहम्मि पुच्छिओ-जोइराय! कओ देसाओ तुम्हे अम्ह पुरं सम्पत्ता?, जोगीवि जम्पेइ-महाराय ! जोइयपयभत्तं भवन्तमायण्णिय उक्कण्ठियचित्तो सिरिपचयाओ तुम्ह दंसणूसुओ समागओ, पुणरवि निवइणा पुट्ठो-अत्थि कावि तुम्ह देवाणुभावसत्ती ?, तेणावि अप्पणो परममुक्करिसं पयडन्तेण भणियं-अत्थी चेव-दंसेमि रत्तीइ दिणं दिणंमी रत्तिं धरित्तीइ गणं गहाणं । पाडेमि थंभेमि किवीडजोणिं, सोसेमि एक्कच्चुलुएण सिन्धुं ॥१॥
॥२२६॥
R ACRORE
Jan Educati
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