Book Title: Samykatva Saptati
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
कीरो निययसरीरं खित्तं गहिऊण जाउ सच्छंदं । तणओ कीरस्स इमो इय नीइं मुणह सवत्थ ॥ ३५॥ कीरी विसन्नचित्ता पभणइ रायं! न एरिसा नीई । तुम्हाण काउमुचिया सत्थस्सऽत्थाण पडिकूला ॥ ३७ ॥ एयं चिय नयमग्गं पयासियं नाह! निययपंचउले । पहियाए लहावसु जेण तुमाणं न वीसरह ॥ ३८ ॥ तो अहिमाणवसेणं, नियमणियं अवितहं व मन्नंतो। लेहावइ बहियाए नरराओ नियअमच्चाओ ॥ ३९ ॥ तथाहि-बीजिन एव हि बीजं क्षेत्रं भवतीह तद्वतामेव । दुर्ललितमहीपालो निर्णयमेवं खयं चक्रे ॥४०॥ सुणिउं निवकयनीइं नीसासपरा विमुक्कपुत्ता सा। धरणिं धसत्ति पडिया कीरी तरुछिन्नसाहव ॥४१॥ कीरोऽवि तम्मि समये निद्रचित्तो गहित्तु तं पुत्तं । दीणमुहं चइय पियं स झत्ति पत्तो मलयसेलं ॥ ४२ ॥ सीयलउवयारेहिं मंतिपउत्तेहि पत्तचेयन्ना। लोएहि ससोएहिं दिट्ठा कीरीवि उड्डीणा ॥ ४३ ॥ सा सत्तुंजयतित्थे समत्थतित्थाण सेहरसरिच्छे । गंतुं पणमइ
रिसहं भत्तीए उसहसेणजुयं ॥४४॥ चउविहमवि आहारं चइत्तु नवकारसुमरणुज्जुत्ता । चित्तंमि भावणाओ 8 भावइ सा भवभउविग्गा ॥४६॥ न गिह न य भत्तारो न य सुयणा नेय अंगजाओऽवि । सरणं इह संसारे एगं8 दामह जिणमयं मुत्तुं ॥४६॥ सा पुण दुललियनिवे गयचित्ता झत्ति भवविरत्तावि । विहिविहियपाणचाया मज्झिम
परिणामजोएणं ॥४७॥ कंचीए नयरीए समग्गतिहुयणसिरीण कंचीए । उप्पन्ना कयपुण्णा सिरिचंदणसारसिद्विगिहे ॥४८॥ बहुपुत्ताणं उवरिं जाया अइवल्लहा पिऊणं सा । नामेण चंदलेहा नमणिजा चंदलेहच ॥४९॥ कुलयं ।
SASRAERASACARA
Jain Education
anal
For Private & Personal Use Only
P
Miainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506